प्रौढ रचनानुवादकौमुदी | Proidh Rachananuvadkoimudi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
454
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ भ्रोढ-रचनालुवादकौसुदी ( नियम १-९ )
दाब्दकोप-२५ ] अभ्यास १ ( व्याकरण )
(क) रामः (रम्) . पातोत्पातः _ ( उत्थान-पतन ), सदूचत्त ( सदाचारी ),
दुराचारः ८ दुराचारी >, वैषेयः ( मूर्ख ), बुक्षितः ( मूखा १ महः ( पहलवान ) |
(७.)।(ख) यू (होना ); अनुभू ( अनुगव करना ), प्रभू ( १. निकलना, २.
समर्थं होना, ३. अधिकार होना, ४. वरावर होना, ५. समाना); पराभू ( हराना (0
परिभू ( तिरस्कृत करना ), अमिम् ( हराना, द्बाना )› सम्मू ( उन्न दोना) ,उद्भू
(चेदा होना ), आविर्भू ( प्रकट दोना ),. तिरोभू (चिप जाना), प्रादुभू, ( जन्म
लेना ); अहू ( योग्य होना ); परिदस् (देसी करना 9 प्रलप् ( बकवाद करना ) ।
( १४) । (म ) परमार्थतः ( सत्य, ठीक ); नाम ( निश्चय से)। (२)। (घ)
मधुरम् ( मीठा ), तीव्रम् ( तेज ) । (२)
व्याकरण ( राम, ट् , प्रथमा, द्वितीया )
१. राम शब्द् के पूरे रूप स्मरण करो । ( देखो शब्दरूप संख्या १ )
२. तथा हस् धाओ के रूप् स्मरण करो । ( देखो धातुरूप संख्या १, २ )
३. भू धातु के उपसर्ग लगाने से हुए विदेप अर्थो को स्मरण करो ओर उनका
प्रयोग करो ।
नियम न कर्ता ( व्यक्तिनाम; वस्तुनाम आदि ) मे प्रथमा होती
टै और कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा होती है । जैसे--रामः पठति । अश्वो घावति ।
रामेण पाटः पठ्यते ।
नियम २--किसी के ज॒मिमुखीकरण तथा संखुलीकरण म ( सम्बोधन करने मै )
सम्बोधन विभक्ति होती है । जेसे-दे राम, दे क्ष्ण ।
निशम् २--( कर्ठरीण्सिततमं कम ) ) कर्ता जिसको ( व्यक्ति, वस्तु या क्रिया को )
विद्योष रूप से चाहता है, उसे कर्म कहते हैं |
लियस छ---( कर्मणि द्वितीया ) कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । जैसे--स
पुस्तकं पठति । स रामं पदयति । ते प्रदनं पृच्छन्ति ।
नियम ५-( अभितःपसितिःसपयानिकषहाप्रतियोगे ऽपि ) अभितः, परितः, समया,
निकपा, दा और प्रति के साय द्वितीया दती है। जैवे--द्थम् अमितः परितः वा |
ग्रामं समया निकपा वा ( गोवि के समीप ) । वुमुभितं न प्रतिभाति किंचित् । |
नियम द--( उममर्वतषोः कार्या० ) उमप्रतः, सर्वतः, पिक, उपयुपरि,
अधोऽपः, अध्यथि के साथ द्वितीया दोती दे । जते -ङृष्मुमग्रतो गोपाः । दपं सर्वतो
जनाः } धिक् नास्तिकम् ।
नियम ७--गति ( चलना, दिल्ना, जाना ) अर्थ की भातुओं के साथ द्वितीया
होती दै 1 गत्यर्थ का आलंकारिकं प्रयोग होगा तो भी दितीया होगी । जेसे-ं
गच्छति । वनं सिचरति । तृर्ति ययो । मम स्पत यातः । उमाख्थां जगाम | निद्रां ययो ।
नियम <--अकर्मक् घातरद उपसर्ग दके लगने से प्रायः अर्थानुसार सकर्मक हो
जाती हैं, उनके साथ द्वितीया होगी । जैसे-र्षमनुभवति ¡ स खलम् अभिभवति ! ख
द्यतु परिभवति पराभवति वा । इध्नमारोहति । दिवमुत्पतति । खामिचित्तमनुवर्तते |
नियम् ९ घातु के साथ साधारण स्मरण मे द्वितीया होती है । सेदपूर्वक
स्मरण में पढ़ी होती है । जेषे -स पाठं स्मरति ( वह. पाट याद् करः
ति ५ करता डर
मातुः समरति । ( वारक खेद के खाथ माता को स्मरण करता है ) । है ) | बाल
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