बनाम्बरी | Banambari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाणाम्यरों वत्स-वंश विख्यात सकल उत्तर भारत में देव-विभा थीं व्याप्त वाणि-सुत सारस्वत में महाशोण में त्रहम-सोत अन्तर-परिलक्षित वाद्यवृन्द पर साम-गान कानन मं मुखमिति ज्ञानदान में चित्रभानु दौ जातं तन्मय राव्द-कुसुम से छात्र-भग करते सधु संचय स्वरवन्तं पर इलोक-सुपर्णा-घ्वनि दादूर्‌-सम स्थान-स्यान पर नृत्य-निवेदित चरण झमाझम हिमगिरि को भी चित्रभानु दिग्देश दिखाते शीरुभद्र : कुलपति, नारुदा से जव आततं शोणभद्र में सागर की गहराई भी है जल पर त्तुग ह्मालय की परछाई भी हूँ दूर-दूर से शास्त्र-अपधिक जब आया करते जीवन-दर्शन-घन जन-मन पर छाया करते भानु-मुखश्नी -इवेद पोंछती स्वयं भारती दुढ़तर पग डगमग करते तो वह संँवारती तत्त्वपुरुष निज त्याग-ज्ञान के बीच खड़ा है उन्नत मस्तक आदि काल से ही निखरा है दिव्य तथागत-तप से भी वह नही डरा है उसका प्रखर प्रकाश प्राण-भू पर बिखरा है २




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