जैनामृत बोध माला | Jainamrit Subodh Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ ]
प्रचल ताप जग मांही हो, प्रभु विपय कपाय मिटाववा काद,
शीतल श्त वेन ।
ध्यावे जो शद्ध भवै दो, नरी श्रावे ्रारत श्रासनी कादि,
पावे शिव सुख चेन ॥ चं० ॥२)
दास श्ररज श्रचधारी दो, विचारी दिरुद् जिनेश्वर कादि,
तारो प्रथु रपाल ।
वार वार क्या कटिये दो, किम किन कयो चित्त दाससखु काद
करुणावत दयाल ॥ च० ॥४॥
जिम तुम दोय चड्ाई दो, भलाई कीजे दम थकी कांइ,
मद्धिर कयो महाराज ।
नेह नजर निहो दो, परथुपालो पूरन भीतडी काद,
गिरा गरीव निवाज ॥ च०।५]
भश खहायफ नायक दो, प्रभु घायक कम महावलौ काद्,
दायक्र शिव सुख सार ।
करुणा सागर नागर दो, प्रभु गुण रतनाकर जग गुरु कां,
कीजे भष जल पार ॥ चं० ॥1द॥
महासेन चप नन्द दो, खख कन्दा लदमा राणी का काद,
मन मोहन गुणवत 1
्रमीरिखने तारो दो, उवारो दुख सागर थकी कांइ,
भय भजन भगवन्त ॥ च० 11७}
भकु
&. आओ सुविधिनाथजी का स्तवने ।
दे शी-मालि जिन बाल व्रह्मचारी । ( लावर्ण। के राग मेँ )
खुविधि जिन समरो नरनारी, मिथ्या देव नेक जगत मेँ
जारो टःरवकारी ॥ तेर ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...