रंजीतसिंह | Ranjeetsingh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सिख धर्म का ्रारंभ श्रौर गुस््ों काणेन ~~ , , । ,१३
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श्रस्तित्व को बनाए रहने के निमित्त तीन बार सगल सूबादीरो से युद्ध करना
पढ़ा । इन तीनों युद्धों में गुरु हरगोविंद का पलों भारी रही ।
गुरु हरगोविंद सच १६४४ ईं० में इस श्रसार संसार से प्रयाण कर गए ।
उन के बाद उन के पोते गुरु हरराय गद्दी पर बेंठे ।* शुरु हरराय ने
अपने जीवन कां अधिकांश आराम व चैन से बिताया । सन् १९९३१ ई०
मं उन की खु पर उन का छोटा लङ्का हरकिशनं गी पर बेठा ।
परंतु उस की स्त्यु थोडे ही समय में दो गई। सन् १६४५ ईं० में गुरु
तेरा बहादुर ने गद्दी संभाली । दस साल के बाद सन् १६७१ ई० में
श्रौरंगज़ेब ने इन्दं दिर्ली ला कर क्रस्ल करा दिया ।
गुर गोर्विद सिंद-सन् १६५५ ३० से सन् १७०८ ३० तक
गुरु तेग्र बहादुर के बाद उन का बेटा गोविंद्राय ( गोविंद सिंह )
गद्दी पर शोभायमान हुश्रा। गुरु गोविंद सिख के दसवें रौर ॒श॑तिम
गुरु थे। उस समय उन शी श्रवस्था केवल पंद्रह वषं की थी। चह
बाल्यावस्था से ही जडे सुयोग्य श्रौर दूरदर्शी थे। पिद्धजञे सत्तर वर्ष
( सन् १६०६ ई० से सन् १६७५ ई० ) मे उनके वंश श्चौर पंथ पर
जो कठिनाइयां पड़ीं चह सेब उन के सम्मुख थीं । उन के परदादा गुर
श्रजुंन देव दर दादा गुरु हरगोविंद पर जहाँगीर ने जो कष्ट पहुँचाए थे
वह उन से बे-ख़बर न थे । सिख इन घटनाओं से पहले ही बिगड़ चुके थे
रब गुर तेग बहादुर की हत्या ने उन्हें सरकार से श्र भी विसुख श्रौर
१गुरु हरगोविंद के पी वेटे थे । शुरुदत्त बडा बेटा था जो श्रपने पिता की
ज़िंदगी मे ही सत्यु पा चुका था। हरराय इसी का बेटा था । एक बेटे का नाम
तेग वदहादुर था जो वाद में १६६५ हे० मे गद्दीनशीन हुआ ।
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