निष्काम साधक | Nishkam Sadhak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
899
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस प्रथ को यशपालजी को भेंट कर तो दिया, पर उतने से उनके हितैथियों को सन्तोव नही हुआ । उन्होंने
लगभग एक वर्ष पूर्व अपनी इ्छा-पूर्ति के लिए चतुराई से काम लिपा। उन्होंने प्रथ का कार्य चुपचाप आरभ
कर दिया । यशपालजी को कानोकान खबर नहीं होने दी और जब वह अपने प्रयत्न में इतना आगे बढ़ गए
कि पीछे लौटना सभव नही था तो उन्होंने यशपालजी से चर्चा की । यशपालजी ने उसका स्वागत नहीं किया ।
उनका कहना था कि मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया कि मेरे लिए इस प्रकार के सम्मान की व्यवस्था की
जाय । मुझसे कही अधिक सेवा करने वाले असख्य व्यक्ति हमारे बीच बिद्य माग हैं । उनके लिए कुछ किया
जाय तो उसकी साथेंकता होगी । पर जब उन्होंने सयोजको की विवशता देखी तो सुझाया कि यदि आपको
ग्रथ तैयार करना ही है तो उसे व्यक्ति-परक न बनाकर उन मूल्यों को समपित कीजिए, जिन्हे मैंने अपने
जीवन मे सबसे अधिक महस्व दिया है । व्यक्ति आता है, चला जाता है, लेकिन मूल्यों का महत्व तो सदा
रहता है। सयोजको ने इस बात को मान लिया ।
प्रस्तुत प्रथ के पीछे यही भावना है। यशपालजी ने मानवीय मूल्यों को सदा सर्वोपरि माना है। प्रथ
की अधिकाश सामग्री मानवीय मूल्यों की ओर ही सकेत करती है। प्रथ के बहुत-से पृष्ठ यशपालजी के
ब्यक्तित्व और कृतित्व के विषय मे हैं, किन्तु उनसे भी वही ध्वनि निकलती है ।
यशपालजी के भित्रो, साथियो, सम्बन्धियो मादि का समुदाय बहुत बडा है, वे यशपालजी के प्रति गहरा
अनुराग रखते हैं । उनके अभिनदन-ग्रथ के लिए मगल कामनाए और सस्मरण बडी सस्या मे प्राप्त होना स्वा-
भाविक है। इन मगल कामनाओ और सस्मरणों का सग्रह प्रथम खड में कर दिया गया है । सस्मरण हमास
मुख्य विषय है और हम कह सकते हैं कि इस ग्रथ मे जो सस्मरण दिये गये हैं, उनमे अत्यन्त हादिकता है, कुछ
सस्मरण तो बहुत ही मार्मिक है यशपालजी के परिवार के सदस्यो के लिखे सस्मरण तो विशेष रूप से रोचकं
गौर मधुर बन पड हैं ।
यशपालजी का जीवन-पटल बडा ही विस्तृत है। उनका कर्मे-क्षेत्र मुख्य रूप से साहित्य रहा है।
उन्होने मनेक विधाभो मे साहित्य का निर्माण किया है 1 कहानियां, कविताए, सस्मरण, निबध, यात्रा-वृत्तान्तं
आदि न जाने क्या-क्या लिखा है। कई पतों का सम्पादनभी किया है। उनमे सामयिकं समस्याभो पर बढ़ी
निर्भीकिता से रिप्पणिया लिखी हैँ । उनकी रचनाम मेसे चनी हुई कृतिया इम ग्रथ मे दी गई हैं।
लेकिन उससे पहले के एक खण्ड की ओर मैं पाठकों का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट करना चाहता
हू । वह खण्ड है, 'जीवन के विविध सोपान ।' यह् खण्ड जआट्मक्थात्मक है, जिसे यशपालजी मे इम ्रथके
लिए आग्र हपु सिखवाया गया है । इसमें उन्होंने बताया है कि उनके जीवन पर कब और किस प्रकारके
सस्कार पड़े और उनके पीछे किस-किसका हाथ रहा । यशपालजी का प्रमुख युण कृतशता है। वह दूसरों के
उपकार को, चाहे वह उनके सबघियों द्वारा किया गया हो या मित्रों हारा अथवा किसी विरोधी हारा, कभी
भूते नही भौर उसका बडी सहूदयता से स्मरण भी करते हैं । इस खंड की सामग्री में जहा उन्होंने अपने पूज्य
माता-पिता के प्रति कृतशता व्यवत की है, वहा अपने अनेकं छोटे-बडे उपकार-कर्ताभो को भी बहे भादर से याद
किया है ।
जिस प्रकार व्यक्ति अपने जनक और जननी का चिर-ऋणी होता है, उसी प्रकार वह उस पवित्र
भूमि का भी ऋणी होता है, जो उसे जन्म देती है। यशपालजी का जन्म ब्रज में हुआ है। धर्म-अध्यात्म,
साहित्य-सस्कृति, कला-इतिहास तथा अन्य दुष्टियो से ब्रज की भूमि महान है। यद्यपि यशपालजी के दोनों
बच्चो (सुपुत्री सी अन्नदा और आयु सुधीर) का जन्म विध्य-भूमि में हुआ है और वे उस पावन भूमि को
बडा सम्मान देते हैं, फिर भी ब्रज की भूमि उन्हे कभी विस्मृत नही हो पाती । उस ऋण को ध्यान मे रखकर
बारह ८ निष्काम साधक
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