प्रमाणोपर विचार | Pramanopar Vichar (1989) Ac 890

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Pramanopar Vichar (1989) Ac 890 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३ ) हो हो नहीं सकती । इसीलिये शास्त्रकारोंने जिख सेत्रमें मनुष्यों का इझाकागमन था सइवोस न दो, किसी प्रकारको कॉलाइल वा घयश आदिके शब्द न हों, ओर जो निर्जन शांत हो बद्दी चेव -ध्यानके योग्य कषा है । मुनिरयाकों दी ऐसे शांत क्षेत्रमें ध्यानकी आजा नही है गृहस्थोके स्यि भो शांत प्रदेश हो ब्यानका स्थान बतलाया है । प्रातःस्मरणीय भगवान समंतमद्राचाये गदस्थों के लिये ध्यानका स्थान इस प्रकार बतलते है - एकांते सामयिकं निर्यातं पे वनेषु वास्तुषु च खेत्यालयेषु वापि च परिचेतत्यं प्रसन्नधिया ।६६। रटनकरणद्झावकाचार गथौतू--बन-जंगल शुन्ध मकान चैत्यालय शादि उपद्रव रहित एकोन्त स्थानें प्रसन्न बुद्धिश्रे सामयिक करना चाहिये ।६९। यहांपर यह्‌ बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि मगवान समंत मदाचयने गस्थोके ध्वानके लिये सबसे प्रथम स्थान वन वत्‌- खाया है उसके बाद सूना घर फिर खेस्यालयका जिक्र किया है । इसका खास मतलब यदी दै कि ध्यानकों निश्चलता बन अगले दी हो सकती है । धदि युदस्थ किसी समय ध्यानके समय घनोंमें नपहुच सके तो ते एकान्त चेत्यालय--जिनमन्द्रोंमें ध्यान कर लेना चाहिये । स्वामी समंतभद्राचाय को जिसप्रकार ध्यान का भनुमव था, उसीप्रकार उन्हें यदद भी छव मालूम था कि ध्यान किस जगह षेटकर अच्छ तरह हो सक्तो है १ दलील्थि




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