सिद्धार्थ | Siddharth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ ¦ ५ मनुज इन्द, समी सम्दरै, उर, जग पड़, समक्ष, मनमे गुने, भुवन-रक्षक, तारक विके, प्रकट बुद्ध तथागत हो रहे । ” तदुपरान्न महान प्रशान्तिका विशद राश्य हुआ नम-भूमिपे,. ककुम-गह्डरसे बह घोषणा निकल लीन हुई नम-शून्यमें । घट गई घटना वह सद ही, त्वरित ही नभ-दर्य हुआ वही, सघन घोर घटा फिर आ घिरी, तम प्रगाढ़ इुआ फिर शीघ्र ही । जग पढ़े जन-यूथ प्रभातमें, नत्र-समृद्धिमयी घरणी लसी, घटित सो घटना गत रात्रिकी निपट खप्रमयी सव्र हो गई । अकथनीय, अरौकिकतामयी, गुरु-रहस्य-युता उदया दिशा, सहित भाग्यवती युवती उषा मुदित रागवती अब्र हो गई | उदय.भूषतकरे सित श्रंगपै मुकुट कचनका अति रम्य था; कनक-कुंडल-से परिवेशभें निहित थी अति-मंजुल दिव्यता ।'




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