वक् पतिराज की लोकानुभूति | Vakpatiraj Ki Lokanubhooti

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Vakpatiraj Ki Lokanubhooti by कमलचन्द सोगाणी- Kamalchand Sogani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हुपें बा श्रनुमव हो रहा है। गाधाधो का हिन्दी भनुवाद मूलानुगामी बनाने का प्रयास किया गवा है । यह्‌ ष्टि रही है कि भनुवाद पढने से ही शब्दों की विभत्तियोँ एव उनके श्रयं समक में झाजाए। श्रनुवाद को प्रवाहमय बनाने की भी इच्द्धा रही है। कहाँ तक सफलता मिली है इसकी तो पार्क ही बता सकेंगे । भ्नुवाद के भर्तिरिक्ते गाधाभों पा ब्याकरणिक विश्लेपणं भी प्रस्तुत किया गया है । इ विश्लेपस में जिन सकेती का प्रयोग किया गया है, उनको सकेत सूची मे देकर समभा जासक्तारहै। यहृभ्राशाकौ जाती है कि व्याकरणक विष्लेपणसे प्राकृत को व्यवस्थित रूप से सीखने में सहायता मिलेगी तथा व्याकरण के विभिन्न नियम सहज मे ही सीखे जा सकेंगे । यह सर्वे विदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का शान भत्यावश्यक है । प्रस्तुत गाधाधों एवं उनके ब्याकर्रणिक विश्लेपण थे व्याकरण के साध-्साथ शब्दों के प्रयोग भी सीखने मे मदद मिेगी। शब्दो की वकरण भौर उनका भपूर्ण प्रयोग दोनों हो भाषा सीखने के भाधार होते हैं श्रनुवाद एव व्याकरणिक विश्लेषण जैसा भी बन पाया है पाठकों के समक्ष है। पाठकों के सुकाव मेरे लिए बहुत ही काम के होगे । श्राभारः वाक्पतिराज की लोवानुमूति इस पुस्तक के लिए श्रो नरहर गोविंद सुद द्वारा खपादित गउडवहो के सस्करण का ठपयोग करिया चया है। इसके लिए प्रो० सुर के प्रति भ्पनी कृतज्ञता व्यक्त करता हैं । 'गठडबहों' का $: सस्करण प्राकृत ग्रन्थ परिपद्‌ भट्टमदावाद से सनु 1975 में प्रकाशित हुमा है। यं मेरे विद्यार्थी हॉ० श्यामराव व्यास, दर्शन विभाग, विश्वविद्यालय, उदयपुर का भामारी हू जिन्होंने इस पुस्तक के एव उस प्रस्तावना को पढ़कर उपयोगी सुव दिए्‌ । दार सोशानुमूति _ सुदाहिया हिन्दी श्रनुवाद प्रेम सुमन जैन, ६३




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