कुशललाभ के कथा साहित्य का लोकतात्विक अध्ययन | Kushal Labh Ke Katha Sahitya Ka Lok Tatvik Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kushal Labh Ke Katha Sahitya Ka Lok Tatvik Adhyayan by रुक्मिणी वैश्य - Rukmini Vaishya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रुक्मिणी वैश्य - Rukmini Vaishya

Add Infomation AboutRukmini Vaishya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नूशस॑लाम्‌ भग जीवन परिचय हम < 9 घशलल।म का सम्नच्य हभ जेक्षतमेरसे ही दिल।९ यत्‌) है 1 उपके जन्म, जन्म स्थान भौर परिवार के सम्नन्ध में हगे कोई जानक। री किसी भी शोत से उपलब्ध वही होती है । परिवार साधु समाज मे सदा से 4६ प्रवृत्ति रही है कि वे श्रपना प्रमुख परिवार अपने गुर के परिवार को ही मानते थे । गुर के ६1९ दीक्षित होने की श्रवस्था ही उनको जम को अवस्था थी । कुधललॉम की भी यहीं स्थिति है। उन्होने भ्रचुर मीन में लघु ५।९ एठंद्‌ ५।५।न्५ से ऽप्छृण्न्तम कोटि की रचनायें हमारे सामने भ्रस्त कीर पर उनमे कही भी उन्ठोने शपने जन्म के विप मे, जन्म।नस्थ। कै नितयमे या शपते ५।त। पित भाई वहनं अथवा कुल के विषय से किसी प्रकार की सुचना नहीं दी है । हमे जो कुछ मी सामग्री मिलती है उसके श्राघ।९ पर हम इनकी शिक्षा दीक्षा सोर १९१५ की श्रोर्‌ शषा के विवय मे अन५५ कु सान्यतयिं स्थापित कर सकते हैं शिक्षा दीक्षा | कुशललाम ने जिस साहित्य का निर्माण किया है उसमे, ^ घनानलकानकदल।- चौपई' और 'ढोलाभ।रूपीपई' ही ऐसी रचनाथे है जो उनकी श्ररस्थिक रलवथो के रू में भानी जा सकती हैं । ये रचना क्रमश सनत 1616 श्र 1617 में रची गई थी । भसं श्रवस्थ। मे वह हुरर1ण के भा शित रहते हुये गुरु पद ५९ सीन थे । इससे हप४८ है कि इस श्रवस्था से पुन ही कमी उनको शिक्षा दीक्षा पण हो चुकी थी 1 यत्‌ 1600 मे कुशवलाभ के दास -€नथ अपने हाथ से लिखी हुई हसपूंप कान्थ की एक श्रति उपलब्ध हुई है? जो उन्होंने सूथ के पढने के लिये लिखी थी । इस प्रति में उ्ठीने ₹नथ को मुनि उपाधि से अलकत किया है और अपने गुरु वाम आदि का निर्देश किया है । इस श्रथ की पुष्पिका, जिसमे उक्त सवनाय मिलती है, निम्नलिखित रूप मे है 1 कुशललाम ने इस कान्य की प्रतिलिपि जिनभाणिक्यसूरि के विद्यमान होते हुए की थी । । पि 2 दषे ५९का नाम्‌ श्रभधधम्‌ था | 3 कुशललाभ उस समय मुनि अ्न९५। मे पण्डित उपाधिघारी बन चुके थे । 1 सवतु 1 हु00 वर्षें भाधवदि पर्चश्यों दिने भौमवासरे इस्तनक्षत्ने श्री अलवर नगरे श्री खरत गच्छे श्री जिकमणिक्यसुरि विजयराज्ये श्री अमयधरमॉपाध्यायाना शिष्य प० कशललाभ ~ मुनिन( स्ववा ननं विलिवे 1 ५भमस्तु लेखनं पारक्यो श्री ॥ घी नभय जन गयालम चीकनेर से आन्त फोटो कापी परियिष्टमे।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now