जीवन - साधना | Jeevan-sadhana

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Jeevan-sadhana by मुकुलभाई कलार्थी - Mukulabhai Kalarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निरीक्षक है और दूसरी ओरसे इनकी नोघें और लेख असी मनोदशा -मानसवस्तु-मानसषटनाको भुपस्थित करते है जो विज्ञानगम्य सही है, इन्द्रियज्ञानावलम्बनवाली वुद्धिको गम्य नही है। इस कारणसे श्रीमद्‌ जंसे पुरुपविशेषकी जीवनकथामेने यदि असा समस्त भाग छोड दिया जाय, तो भौ इसके छोड देने पर भी इसमे सदाचारनिष्ठ वहत कुछ निरुपण किया जा सकता है। गौर यही जीवनचरित लिखनेमे वडी मुलझन आती है। जो अनुभव चरितनायककै जीवनके आधारभूत बने दिखाई देते है, यदि जुवकों छोड दें या गौण कर दे तो शुनका जीवन कैसे लिखा जा सकता है? अंसे गृढस्तरकफे अनुभवकी वात न हो वहाँ भी चरितनायककौ यदि प्ैरणारूप श्रद्धा हो, अुसको ध्यानमे रखे चिना किस तरहसे यथायोग्य समञ्च सक्ते ह? अृदाह्रणाथं महात्मा गाधीकी ईदवर प्रति श्रद्धा-- पु 2 इपााटा 0 पिंड छाडाटएट पिका एव पाल 9 19 पतप. 0 1 216 अणि 10 पऽ (तला पला त्वप प्ल पी [ पशु [ह्‌ प्रप्तपा 277 वत्‌ फरवाला पप्र 701 प्लाजा पि) इनकी असी ओौर दूसरी लोकोत्तर श्रद्धा मौर प्ैरणाके विना गाधीजीके आचार-विचारोको समन्ञनेका गौर शुनके पालन करनेका प्रयत्न कितनी विषम स्थिति -- हास्यकी और ढु खकी -- भुत्पन्न करता है यह हम आज देखते हैं। यो यच्छूद्ध स मेवस (भ गी १७-३) जो जैसी श्रद्धा रखता है बह वसा होता है। परन्तु श्रीमदु या. रामकृष्ण परमहस, रमण महपि या श्री अरविन्द जंसोके आन्तरविश्व {21ध-श्द्धासे भी किसी अन्य प्रकारके दिखाई देते ह! इनके आन्तरविष्वोमे इस श्रद्धाके पदार्थोकि अनुभव, दर्शन” या समापत्ति होते हैः इस कारणते यते 1 शष्‌ ८100 फू 48 १३




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