श्री भागवत दर्शन भाग - 99 | Shri Bhagawat Darshan Bhag - 99

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Shri Bhagawat Darshan Bhag - 99 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ मेरे छुछ मद्दीने बताने पर सदन कहा-“सैं बारे वर्षो स्तक दिगम्बर बनकर गगा किनारे-किनारे बिचरा हूँ । भर्गवान सुम्दारी रक्षा करे देखे, ॐ दिन तुम्हारा यद बैराग्य टिकता है? उनकी घात सुनकर सुमे दसी ईं । स्था मेरा मी कमी वैराग्य समाप्त होगा ? क्या मैं भी कभी दिंमालय से लौटकर यहाँ ब्याऊँगा कया में भो कभी गद्दो तकिया लगाकर पक्के भवनों में रहूँगा ? क्‍या मैं भी कभी भॉति-भाँति के पदार्थों से अपना सहार पृण करूंगा ? यदद असम्भव दै, ऐसा नहीं दोने का। खन महापुर्ष की बाणी सत्य हुई । असम्भव वात सम्भव हो गई। मैं हिमालय से लौटकर तीथ में ही नहीं तीथंराज में ा गया ? चेराग्य कर्पूर की भाँति चड़ गया । मेरे गदद तकियों के सामने उनके साधारण मैत्ते गदे तकिये नगण्य थे । जिस भवन में में रहता हूँ सके सम्मुख उनकी साधारण सी कुटिया शु भी नदीं थो । श्राज कल के मेरे रहन-सहन, ठाठ-बाठ, श्मा्ारादि को कोई देखे शरीर उस समय के कोई देसे तो श्राकाश पाताल्ञ का श्रन्तर पविगा । समय की बलिदहारोहै। प्रारव्यका खेल दै, पूवं ससार का परिणाम है। माया है, लीला है, जन्मान्तरों के भोग हैं । यद्द प्राणी स्वकर्मे सूत्रों में झावद्ध है । फिर हम चरु घाट झाये । यद्द सन्यासियों का स्थान था ! शगा किनारे बहुत से विरक्त महात्मा यहाँ रहते थे । इन दिनो र्वामी ज्ञानाश्रमजी की यहाँ बडी प्रसिद्धि थी, वे बढ़े त्यागी तितिक्ठु विरक्त महात्मा थे। इमारे पू० श्री उडिया थावा यहाँ अहुत दिनों तक रदे ये, स्वामीजी में गुठमाव मानतेये। वव चक्ष सैंने श्रा उडियायाबाजी के देन नहीं किये थे, केवल नाम ही सुना था!




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