जैन कहानियाँ भाग - 15 | Jain Kahaniyan Bhag - 15

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Jain Kahaniyan Bhag - 15   by महेन्द्रकुमार जी प्रथम - Mahendrakumar Ji Pratham

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुनिवर मुनिपति अंग देश ने मुनिपतिक नामक नगर था । विक्रम व स्याय में भ्रग्रणी मुनिपति वहाँ का राजा था । पट- रानी का नाम पृथ्वी और राजकुमार का नाम सुन्ति- चन्द्र था | एक दिन राजा मुनिपति राजमहलो में बैठा आामोद-प्रमोद कर रहा था । महारानी पृथ्वी राजा के केशों को सहला रही थी । एक श्वेत केश को देखकर १ से बह वोल पडी-“स्वामिन्‌, चोर आ गया 1 41 राजा चौका श्रौर चारो श्रोर देखने लगा । उसे चोर दिखाई नहीं दिया । महारानी से उसने प्रन किया-“कहाँ है चोर ?”” महारानी ने सफेद के को राजा के सिर से उलाडा भर दिखलाते हुए कहा-- देखिये, बुढ़ापे के द्वारा भेजा गया यह चोर अ+ राजा अन्तर्म दशना ¦ वह्‌ सोचने लगा, यौवन




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