गान्धी वादी शासन विधान | Gandhi Vadi Shasan Vidhan

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Gandhi Vadi Shasan Vidhan by गोकुलचंद्र जैन - Gokulchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुनियादी सिद्धांत ११ दोनों के मध्य में हो । राज्य का कर्तव्य है कि व्यक्ति श्रौर समाज के हितों के चीच सामंजस्य के लिए. श्नुकूलतायें निर्माण करे, उसे चढ़ावा दे श्र मजबूत करे । व्यक्ति राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करे ओर राज्य व्यक्ति के अधिकारों की रक्ता करे और उसे ्रपने व्यक्तित्व का पृणंतया विकास करने में सद्दायता करे । प्रो० टॉनी इसी कल्पना को “फंकशनल सोसायटी” (कर्तब्यशील समाज ) इन शब्दों में प्रकट करते हैं | श्र्थीत्‌ समाज की सेवा के कार्यों से श्रधिकार शपने आप प्राप्त हो हो जाते हैं ।* दूसरे शब्दों में व्यक्तियं! के श्रधिकार तर स्वतन्त्रता सपे्त, आ्रानुपंगिक हों । इनकी कुछ शर्तें हों । वे ऑ्निवन्ध और एकदम सर्वतन्त्र स्वतन्त्र न हों | श्री ए० जी० गार्डिनर लिखते हैं, “व्यक्ति की स्वतन्त्रता का अर्थ तो होगा सामाजिक श्रराजकता । सबकी स्वाधीनता की रक्षा के लिए प्रत्येक को श्रपनी स्वतन्त्रता पर कुछ निवंन्ध लगाने होंगे | हां, जो बातें पूर्णतया व्यक्तिगत हैं श्रौर जो किसी दूसरे श्रादमी की स्वतन्त्रता में बाधा नहीं पहुंचाती, उनके चारे में हम जो चाहिं कर सकते हैं” । मान लीजिए मैं किसी नदी या करने के किनारे एक लम्बा कोट पहनकर या श्रालों को लम्बा छोड़कर श्रौर नगे पर धूमना चाहता हं तो मुभे कौन मना करेगा आप चाहिं तो मेरी हंसी कर सकते हैं । पर मैं इसकी परवा नहीं कल गा। यद्‌ स्वतन्त्रता मुभे दै । इसी तरह श्रगर मैं श्रपने बालों में खिजाब लगना चाहुः या मोम लगाकर श्रपनी मूछों को खड़ी रखने की मुझे इच्छा हो-( हालांकि वात तो जरा वेहूदा ही दै ) या मैं ऊंची दीवाल- चाली टोपी पहनना चाः चद्न ने मरम कोट श्रौर पैरो मे सैंडल पू श्रयवा रात देर से सोकर सवेरे जल्दी उटना चाहूं तो यह सब मैं श्रपनी इच्छानुसार कर सकता हं । इसमें किसी श्रादमी से पूछुने जाने की जरूरत ˆ नी !* प्र जिस देए हम इस मर्यादा से बादर कदम रखते ह हमारा कायं स्वातन््य दूसरो कौ स्वतन््रता से मादित हो जाता है । दुनिया मँ १ 'एक्विजिटिव सौसाइटी'-पो० टॉनी २ एसे 'श्रॉन दि रूल श्रॉफ दी रोड




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