प्राचीन भारत में सामाजार्थिक परिवर्तन | Prachin Bharat Men Samajarthik Parivartan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
उज्जैन तक पहुंचा।12 दक्षिण मे यह कृष्णा नदी पर स्थित अमरावती से प्राप्त हुआ
है। यह लम्बी यात्रा मौर्य साग्राज्यवाद के कारण सम्भव हुई होगी। 13
उत्तरी काले पालिशदार बर्तन के साथ लोहे के बहुत से ओजार भी मिलते है
जो भौतिक परिवर्तनां के विषय म जानकारी प्रस्तुत करते हैं। उत्तर मे पेशावर ओर
तक्षशिला से दक्षिण मे अमरावती से, पूरब म वानगढ ओर शिशुपालगढ से तथा
पश्चिम में नासिक तक ऐसे मृदूमाण्ड मिले हैं जो लौह युग के परिचायक हैं।
तक्षशिला” से प्राप्त लौह उपकरणों में भाला, बढइयों द्वारा प्रयुक्त बसूला तथा एक
उन्नतोदर पृष्ठ भाग वाली छुरी प्राप्त हुई है जिसका किनारा ऋजु है। हस्तिनापुर से
एक कटीला साकेट-युक्त बाणाग्र, छेनी तथा ब्लेड वाला हँसिया प्राप्त हुआ है।
कौशाम्बी!5 के सास्कृतिक काल से उत्तरी काले पालिशदार मृद्माण्डों के स्तर में
लौह उपकरणों की अधिकता दिखाई पडती है। रपर से कीर्ले, हुक, छदे,
साकेययुक्त बडी कीले, मूठ, छुरे, हँसिए तथा भालों के अग्रभाग प्राप्त , होते हैं।
नालदा'8 से प्राप्त उपकरणों मे च्रे, भाले, छेनियौँ, ब्लेडयुक्त फुलावदार हँसिये, चौकोर
आयताकार तथा षट्कोणीय बाणाग्र, दो धार वाले भाले, कदार, कौलं तथा प्यालियों
सम्मिलित हैं। बहल'? से भालों के अग्रभाग छुरियाँ, भाले तथा छेनियाँ प्राप्त हुई हैं।
विहा मे सोनपुर से कीलं तथा ब्लेड प्राप्त हुए हैं। उपर्युक्त उपकरणों में हल,
हँसिये, हुक तथा गडासे की उपस्थिति से इस बात का आभास मिलता है कि प्रस्तुत
काल में लोहा कृषि तथा उत्पादन के क्षेत्र में पदार्पण कर चुका था।
लोहे की विभिन्न उपकरणों का रूप देने में धौंकनी*' का प्रयोग महत्वपूर्ण
सिद्ध हुआ होगा।22 इस सदर्भं मे उज्जैन के उत्तरी काले पालिशदार बर्तनों के स्तर से
User Reviews
No Reviews | Add Yours...