स्वामी रामतीर्थ | Swaamee Raamtirth

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Swaamee Raamtirth  by रामेश्वर लाल - Rameshvar Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा भाग जीवन-चरित १्द शुद्धता से करते थे । इस प्रकार उन्होंने अपने को विल्दाण विद्वान चना लिया था। ऐसा प्रतीत होता है कि 'झपनी श्रायु के तंतीस वर्पः के प्रत्येक चण का उन्होंने श्त्यत सदुपयोग किया था । श्रपने श्रन्त समय तक्र वे कठोर परिश्रम करते रदे] झमेरिका में दो वर्ष के प्रवासकाल मे, सावजनिकं कार्यो में घोर श्रम करते हुए भी, प्रायः समस्त अमेरिकन साहित्य उन्होंने पढ़ डाला था । संसार के सव अन्यकारयो, 'अवतायों वा महात्मानो, कवियों शरीर योगियों के सम्बन्य में श्चपना मत प्रकट करते समय वे एक शदूभुत रसिकता का परिचय देते थे । डनकी 'झनोखी तथा निष्पद ज्ञोचना में किसी प्रकार का पारिडत्य प्रदर्शन, वनावटी श्चभिमान की नाममात्र दाया, प्चथचा कोई निस्सार वात नहीं द्ोती -थी । बातचीत करते समय चेद से लगाकर किसी नवीन से नवीन मौलिक पंक्ति तक का जो विचार उनके दिल पर चुम जाता था, वद्‌ यथायोग्य उनके विचारों के समयंन में सद्दायक भी होता था तथा उन्दी का श्चनुभव-सिद्ध सत्य उमे प्रकट करना पडता था1 वे शरद्य कोटि के विद्वान, तत्त्व परौर त्र्यवादी ये । वुद्धि कौ उन्नति के साय-साथ वे पनी घ्माध्यात्मिक उन्नति को भी चड़े ऊँचे शिखर तक पहुँचा सके थे । लाहौर की घनी वस्ती व उनकी 'झात्मोनति श्धिक कर सकने में श्रसमथं थी। जो कुछ समय न्दं मिलता था, वे चसे उपनिपदों श्रौर्‌ प्राचीन श्रायं.न्रझमविद्या के रहस्यों के विचार में हिमालय की पदाडियों तथा जंगलों में विताते थे | हृपीकेश के निकट, न्रह्मपुरी के घने वन में स्वामी राम का शममीप्ट सिद्ध द्मा धा-श्रयात्‌ उन्हें श्ात्मा का सादात्कार हुमा था। यही वह स्थान है कि जहाँ उन्दें मन की उस भयातीत श्रानन्दमय पक्ता की श्राप्ति हुइ थी सिसमें न खेद है घोर




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