संसार और धर्म | Sansar Or Dhram

Sansar Or Dhram by किशोरलाल घनश्यामलाल मशरूवाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mashruvalaपूज्य नाथ जी - Pujya Nath Ji

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किशोरलाल घनश्यामलाल मशरूवाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mashruvala

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पूज्य नाथ जी - Pujya Nath Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। प शूषणवे अमल देखनेमें आता है। जिसलिजे प्रब्न यह है कि पहले मुख्य लक्ष्य किस दिशामें और किस ध्येयकी तरफ दिया जाय। दोनो लेखकोकी विचारसरणी स्पप्ट रूपसे कहती है कि पहले मानवताके विकासकी ओर लक्ष्य दिया जाय गौर मुसके मुताबिक जीवन विताया जाय! मानवता विकासका अर्थ है --आज तक मुसने जो जो सद्गुण जितनी मात्रामे साधे हैं, भुनकी पूर्णरूपसे रक्षा करना और जुनकी मददसे अन्ही सद्गुणोमें ज्यादा शुद्धि करके, नवीन सद्गुणोका विकास करना, जिससे मानव-मानवके बीच दद्र मौर गवुताके तामस वल प्रकट न {ने पावें । जिस तरह जितनी मात्रामे मानव-विकासका ध्येय सिद्ध होता जायगा, अूतनी मात्रा्मे समाज-जीवन सूमवादी भौर सुरीला वनता जायगा । भुसका प्रासगिक फल सर्वभूतहितमें ही आनेवाला है । जिसलिअे हरअेंक साघकके प्रयत्तकी मुख्य दिशा तो मानवताके सद्गृणोके विकासकी ही रहनी चाहिये । यह सिद्धान्त थी सामूहिक जीवनकी दृष्टिसि कर्मफऊका नियम लागू करनेके विचारमें से ही फलित होता है। अूपरकी विचारसरणी यृहस्याश्रमको केन्द्रमे रखकर ही सामु- दायिक जीवनके साथ वैयक्तिक जीवनका सुमेल साधनेकी बात कहती है। यह जैसी सूचना है जिसका अमल करनेसे यृहस्वाश्रममें ही वाकीके सब आश्रमोके सदुगुण साघनेका मौका मिल सकता है। क्योकि अुसमे गृहस्याश्रमका आदर निस तरह बदल जाता है कि वह केवल भोगका धाम न रहकर भोग और योगके सुमेलका धाम वन जाता है। जिसमे गृहस्थाश्रमसे अलग अन्य आश्रमोका विचार करनेकी गुजाजिश ही नही रहती । गृहस्थाश्रम ही चारो आश्वमोके समग्र जीवनका प्रतीके वन जाता है। और वही नंसगिक भी है। श्री मशरूवालाका भैक निराला व्यक्तित्व अुनके लेखोसे प्रकट होता है । जिन लेखोंके पठन गौर मननसे मुझे यह विद्वासं हो गया है कि जनमे किसी अन्त प्रज्ञको अखण्ड धारा वहती रहती है 1 यह चित्तयुद्धिकी साधनाकी अमुक भूमिकामें प्रकट होनेवाला, सत्यमुखी प्रज्ञोदय है । ञूनकी कुछ लाक्षणिकता तो चौधिया देनेवाली होती हैं। जब वे नत््वचिन्तनके गहरे प्रदेशमे अुतर कर १७




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