पञ्चामृत | Panchamrita

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Panchamrita by क्षीतर - Kshitarखेमदास - Khemdasबालकराम - Balakramभीषजन - Bhishjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(4 र दरीदास दछीतर अगन, दामोदर केशो । कल्याण दे बनवारी, राम रत गदिमत वेसो ॥ जन संघो संगल रात दिन, दीसे दे दे कार अच । इमि रज्ज श्ज्जव मन्त के, भले पिद्धो पे साध सव ॥ १॥ उपरोक्त पन में रञ्जयजी के प्रमुख शिप्यों के सब्र के नाम दे दिये गये हैं इन्दी मे छीतरणी का व खेमजी का नाम श्राया है । खेमदासली सरवाड म स्वतन्र रूप से रहते थे । मक्तमालाकार से खेमदासजी का विशेष परिचय भी दिया है। जैसा कि इस मनहरः कवित्त से शात दोता दे-- ग्न्त रञ्जय के ग्रज्जवय शिप्य खेमदास; जाके नेम नित प्रति त्रत निराकार को। ` पथमे प्रसिद्ध श्रति देखिये देर्दप्यमान, याणी को विनाणी ग्रति माङिनिम भारकी]) रामत मेवाढ में मेवासी मुख सोहे गत, लत खरो सुहात वेततवा विचार को! राघो सारो रट्णी कौ कणी सुकरत प्रति, चेतन चतुर मति भेदी सुखसार को ॥ यह पद श्राभास कराता है कि खेमद्‌स जी निराकार कैः ट उपासक, प्रत्यन्त शील सम्पन्न, वाणी के विशेषज्ञ व रत्णी चथणी में एक रूप थे । रभा शुक सम्चाद के श्रारभ में उनने रज्जय जी. मद्दाराज के गुरु




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