पञ्चामृत | Panchamrita
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दरीदास दछीतर अगन, दामोदर केशो ।
कल्याण दे बनवारी, राम रत गदिमत वेसो ॥
जन संघो संगल रात दिन, दीसे दे दे कार अच ।
इमि रज्ज श्ज्जव मन्त के, भले पिद्धो पे साध सव ॥ १॥
उपरोक्त पन में रञ्जयजी के प्रमुख शिप्यों के सब्र के नाम दे दिये
गये हैं इन्दी मे छीतरणी का व खेमजी का नाम श्राया है । खेमदासली
सरवाड म स्वतन्र रूप से रहते थे ।
मक्तमालाकार से खेमदासजी का विशेष परिचय भी दिया है।
जैसा कि इस मनहरः कवित्त से शात दोता दे--
ग्न्त रञ्जय के ग्रज्जवय शिप्य खेमदास;
जाके नेम नित प्रति त्रत निराकार को। `
पथमे प्रसिद्ध श्रति देखिये देर्दप्यमान,
याणी को विनाणी ग्रति माङिनिम भारकी])
रामत मेवाढ में मेवासी मुख सोहे गत,
लत खरो सुहात वेततवा विचार को!
राघो सारो रट्णी कौ कणी सुकरत प्रति,
चेतन चतुर मति भेदी सुखसार को ॥
यह पद श्राभास कराता है कि खेमद्स जी निराकार कैः ट उपासक,
प्रत्यन्त शील सम्पन्न, वाणी के विशेषज्ञ व रत्णी चथणी में एक रूप
थे । रभा शुक सम्चाद के श्रारभ में उनने रज्जय जी. मद्दाराज के गुरु
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