मुन्नी की डायरी | Munnii Kii Daayari

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Munnii Kii Daayari by आदित्य प्रसन्न राय - Aadityaprasann Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) क्रांति के लिये हमारे सामने बड़ी-ब्ड़ी सांस्कृतिक और भौतिक कठिनाइयाँ हैं ।”” लेनिन को जो कुछ करना था, उसने कर दिखाया | उसके सामने जो विध्न-बाधघाएँ आई, उन्हें वह वीरतापूर्वक भेलता गया । अन्त में उसने सारे रूस में सांस्कृतिक क्रांति मचाकर ही कल की । गंभीर भाव से जनन-मनोविज्ञान का अध्ययन करने पर यह बात ठीक जैंचती है कि बालकों में अश्राकृतिक व्य- भिचार का श्रीगणेश तभी होता है, जब उन्हें प्रतिकूल वायुमंडल में रहकर मेथुन-संबन्धी बातों के रहस्य का पता लगाने और मेथुन करने की उत्कट इच्छा होती हैं । जब उन्हें उसके रहस्य को अच्छी तरह समभने का मोक़ा नहीं मिलता, तो वे अधीर होकर अपने शरीर को नष्ट कर डालते हैं । सोचते हैं, इसीमें दुनिया का आनन्द है | हमारे वत्तेमान समाज में बच्चों के प्रति बड़ी उदासीनता दिखाई जाती है--उनके प्रति कत्तव्य पालन नहीं किया जाता । यह तो सवंसम्मत है कि अप्राकृतिक व्यभिचार जितना पुरुषों में फैला हुआ है, उतना खतियों में नहीं ।




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