विवर | Vivar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand): से निकल गया था; ना : साला !'
फिर भी स्वध्रश्रम जिस दिन यह जान पाया, कि नीता आ्रकेले मेरी नहीं है
उस दिन, उफ ! *ए मर्डर, हिच आई थॉट सेक्रीफाइस : आई सा दाइ देंडकर-
चीफ |” लेकिन मैं उसके बाद कई दिनों तक यकेला-यकेला ही हैँसता रहा,
हम साधु पुरूष हो ! और नीता चरित्रहीन, विश्वासघातिनी है ! तुम्हारा सर !
जो हम हो, वही मैं हूँ । यह तो जानी-द्रूमी बात टै, वावा !
उफ् | ख्याल ही न रहा, कब सिगरेट खत्म होने को आई, आग की गर्मी होठों
को छू' रही है । शायद हॉठ जल ही गये | लाल हिस्से के साथ अटके थाग के
टुकड़े को जल्दी में हाथ से हटा टिया घर वॉई थओर घूम गया ।. नीता की
खुली पीठ पर रखे वायें हाथ पर शरीर का वोक रख, दूसरे हाथ से कुछ दूर
पड़े टी-पाय पर रखे एश-ट्रे में सिगरेट का टुकटा डाल दिया । हॉठ चाट
कर महसूत करना चाहा, नच टी जल गया दै क्या १ आईने के प्रतिविम्व में
होठ उलट कर देखना चाहा, ,शायद फफोला नहीं उठा है । लेकिन जलन हो
रही है, ताप लग रहा है ।. और इसका अनुभव करते समय लगा; वाँया
हाथ वफ पर पड़ा है | ठंडा और सख्त, प्रायः भूल ही गया था कि नीता ठड,
यानी मरी पड़ी है । लेकिन अव तक तों इतना टंडा नहीं लगता था । इतनी
थी भी नहीं । चव लगता है, जैस ठंडी यौर सख्त हौ गई टै । उसकी मुगटित
पीट की वह कोमलता अव यतुभूत नही होती |
मैं दाहिने हाथ से अपना गाल ौर मुहं लेता। कितना फक है |
अगहन का महष्टीना, ठण्डक तो है ही। तब भी सुके अपने हाथ; मूंह पर
ठण्डक के बावजूद गर्मी महसून होती है । और नीता के शरीर की ठण्डक,
इसे ही शायद “मृत्यु की शीतलता' कहते हैं । और मेरे न्द्र क्या यह “जीवन
की उप्णता' है? हो मी सकता है । लेकिन नीता नो निश्चित रूप से “भ्त्यु
शीतल' है, इसमें कोई सन्देह नदी | इसके पहले मृत मनुष्य की देह पर
मैंने कमी हाथ नहीं रखा था । मूत्र के प्रति श्रद्धा दिखाना धर्म है । जानता
हूँ, लेकिन सच कहूँ तो मेरा मन घिन से भर उठता था ।. इस तरह, जेसे मैं
साँप की देह पर दाथ रख रहा हों । मव मिधित सिदरन सुक में होती थी ।
लेकिन नीता के सम्बन्ध में, सुककों ऐसा छुछ नहीं लगा । शायद इसलिये तो
- नहीं कि, उसकी देह मेरे लिय अधिक जानी-पह्चानी थी १ या दसल्यि तौ
नौं कि छसकी देह हमेशा कको वेह सुन्दर और अच्छी लगती रही है, और
यव मी उसकी पृरी दह मेँ एक सुन्दर गंध है १ सुमे विन नहीं लगती और शव
के ग्रति एक अलौकिक मय से मैं सिहर नहीं रहा हैँ। ऐसा कुछ है जरुर,
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