आनंदवर्धन | Anandavardhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
597
श्रेणी :
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No Information available about रेवाप्रसाद द्विवेदी - Rewa Prasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९
टस ग्रन्थ का उपसंहार वाक्य भी उपस्थित करना चाहता ह--
यह श्रम ध्वनिरुपी विश्वनाथ के प्राचीन मन्दिर का पुरोहित हे--घुण्डि-
राज गणपति 1
संस्छृत-काग्यथास्त्र भारतीय प्रना या मानवीय सरस्वती का स्मेर, गुचि
भीर गान्त श्यृद्धार ह । उसकी रचना भी एक से यनेक ओर अनेक से एकं तक
परटुचकर् गान्त होने वाटी विद्व रचना हौ ह । वह् समस्त अर्थो से गभित गब्द-
स्फाट' भीर् प्रतीयमान के एक भौर अद्वितीय तत्त्व को पीठिका बनाकर वाच्य
भयं के इंतयुग्म तक पहुंचती भौर अन्त में रस के अर्त घन में जा डूवती ही है ।
वाच्य अर्थ उपमाकेर्टेत से आरम्भे कर रूपक के अव्यारोप मीर अपहनुति के
अपवाद की सीढ़ियों पर चढ़ते-चढते निगीर्याव्यवसाना अतिगयोक्ति के अटत में
पयवसित वित्रित किया जाता ह और प्रतीयमान भी वस्तु तथा अलद्भार के ह
से भारम्भ कर रस के ब्टेत में । भौजराज के णव्दों मे अन्ततः यह् सव ह गब्द
या ध्वनि का ही विवर्तत । भौर इस प्रकार मानों काव्य के ही समान काव्यणास्त्र
भी परम व जगद्धर के णव्दो--दह्दय की गोँ-कार ध्वनि है जो अपने गर्भ में
समस्त वाइमय को गुम्फित किये हुए है, जो सच हैं, अक्षर है, पर है । आइये
& “~ ६
जगद्धर केही दब्दांमं ह्म इस ध्यनि की उपासना करें--
~
ओमिति स्फरुरस्यनाहतं गर्भ॑गुम्फित-समस्त-वाद्मयम् ।
दन्व्वनति हृदि यतु पर् पदं तत् सदक्षरमुपास्मट् महः ॥२
रद्र पच्चमी २०२८ वि°
काणी हिन्दू विध्वविद्यालय रेवाप्रसाद द्विवेदी
वाराणसी
ना ०१०७००७१
१. यही पृष्ठ ५४६ पर,
२. स्तुनिकुसुमा जल 215
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