आत्मानुशान प्रवचन | Aatmanushasan Pravachan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्लोक है १५
टक रदा है, उनको जान रद! दै वही ज्ञान यदि अपनी विनय प्रषृत्ति चना
ले अर्थात् यह उठा हुआ झान; परपदार्थोमें सिला हुआ ज्ञान झपनी विनय
पङकतिसे पनी दी चोर ऊंककर दृष्टि करे तो यह ज्ञान चाहरसे हटकर
श्रपने सोतमे भिलक्रर श्नन्तश्यानन्दका श्रलुभव कर सकता है! तव यह
ज्ञान संमक्तिगां कि ज्ञानस्वरूप परमनद्यकी क्या महिमा है ?
` यथायेताका भतिपादन-- या दरष्टान्तमे अत्म जलसे भीगे हुए
' बादंलोकी कहानी आचायंद्व यथाथं ज्ञान वाले ज्यक्निकी दुलंभता कह
रहः दै । ठक् चीज शनौ दै । भले आदमीको केवल भला क्रिस लिए कते दै,
क्या होता है, इसका व्याख्यान करने मात्रकी जरूरत होती है । उसे यह
कहदनेकी झावश्यकता नहीं होती है कि हम पर विश्वास करो । हम तुम्हे
यथार्थ उपदेश दे रो, इसके कइनेकी जरूरत नहीं होती है । इसी नीतिके
अनुसार शाचायंदेव चकक््ताकी दुलेभता बता रहे है ।
विपाकमधुरताके कारण कटु शओषधिका पान भी श्राचश्यक--
शराचायेटबेने यह् ्नाश्वासन दिया था कि देखो तुम दु लसे डरते हो, सुख
चाहते ही तो वुम्दारे मन माक ही बहुत मधुरतत्त्वका उपदेश करेगे |
कदाचित् उसमे तुमे. कोर बात कड् भी मिले, नियम, तप, सयस, संन्यास,
परियहका छोड़ना» कोई उपदेश हर टु लगे? वोम लगे, वोम तो नीं ह
चिक वोफको हटाने बाली वात » लेकिन जो बोकमे ही झनुरागी है उसे
बोः तो सुहाता है अर बोक न रहे ऐसी बातपर विश्वास नहीं होता हैं ।
तो हुम्हें यदि कुछ कट मालूम पडे तो आंखे मीचकर उसे पी जाना,
छोडना नदीं । जसे रोगी लोग कट ओोषधिको श्वा मीच कर पी जति ह,
भला वतलाबो तो ्रोषधिने आंखें मांची है स्या ? क्यो उसको शंसि मौर `
कर पी जाते है ? कितनी दी कड़ वी द्वा हो तो आदधे मीचकर पीते है|
ाखोंको उदण्डतादृद्धिमं सहयोग-- ये भाखें सव उदण्टोकी उदण्डता
सिरतांज दै । अगर भांखोसे देखनेका योग सिले तो ये चार इन्द्रिया
तेज दण्ड दो जाती 1 कभी आनन्दसे कानोसे गाना सुन रदे है तो
शरानन्दं तो ननेमे ही घाता है पर ्रांखों देखे बिना चैन नहीं पड़ती है ।
कौन या रद्दा है? किस तरह चैठा है । कानोंसे सुन रदे हैं, उसका कुछ मज
तो मिल रदा है पर थाखोंसे देखे बिना चेन नहीं पड़ती । ये भाखें मौज में
कुछ गुणों जरूर लगा देती हैं । ये आंखें उद्दरडततामें सिरताज हैं। त्र
भी सूंघते हं नाक्से तो उसके द्वारा मोज माननेकी वात बनती तो है नाकं
हारा? पर धाखों खे चिना. नहीं मानते है । उसरी सौजमें ये जह म
गुणा जरूर दे देती हैं। ऐसे ही झांखों देखकर मघुर चीज खाने में और
प
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