काव्य और कला तथा अन्य निबंध | Kavya Aor Kala tatha Any Niband
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १९१९ )
वादात्मक पद्धति पर । दोनों के मूर मै विवेक या विकल्प का अंश
है। पूर्णतः संकल्पात्मक ये कृतियाँ नहीं हैं । आदर्शवाद और
यथाथवाद इन शब्दों का प्रयोग स्प्र रूप से इस प्रसंग में न करने
पर भी प्रसादजी का आशय यही जान पड़ता है । ये थाच्द प्रसा-
द्जी ने आधुनिक प्रचलित अथे से कछ भिन्न अथं में व्यवहृत किए
हैं, जिसे हम आगे देखेंगे । यहाँ समझने के डिए इतना दी पर्याप
है कि आदवाद में लोकोत्तर चरित्रों और भावों का समावेश
प्रसादजी ने माना दै ओर यथाथेवाद में छोकसामान्य घटनाओं,
मनोवृत्तियों आदि का! किन्तु ये दोनों ही वाद प्रसादजी की
सस्मति में बोद्धिक या विवेकप्रसूत ह । ये रसात्मकं या आनन्दा-
त्मक नहीं है ।
यदी नहीं प्रसादजी का सत दै कि पौराणिक साहित्यक से
खेकर अधिकारा श्रव्य कान्य ( जिन्हें प्रसादजी ने समयोपयोगी
भ्पाछ्य काव्यः नाम दिया है ) जिनमे कथासरित्सागर ओर दश-
कुमार-चरित्र की 'यथाथंवादी' रचनाएँ ओर कालिदास, अश्वघोप,
'दुण्डि, भवभूति आर भारवि का काव्यकाल भी सम्मिदित दे,
बाहरी आक्रमण से द्ोनवीये हुई जाति की झतियाँ हैं। इनमें
भाचीन अद्धेत भावापन्न 'नाश्यरस' नददीं है । “आत्मा की मनन
शक्ति की वह असाधारण अवस्था ( वह रहस्यात्मक प्रेरणा ) नहीं
दे, जो श्रेय सत्य को उसके मूल चारुत्वं मे सदसा अहण कर
५, क
च
ता हइ ।
५,
ॐ
संक्षेप में प्रसादजी की मुख्य विवेचना यहाँ समाप्त हो जाती
है। स्थूल रूप से हम कट् सकते हैँ म उन्होने एक ओर आन॑-
द्भरधान, रहस्यारमक या रसात्मक ओर दूसरी ओर विवेकप्रधान,
चोद्धिक या आरंकारिक साहित्य की दो कोटियाँ स्थिर की हैं
आर उन्हें अद्वेत और द्वेत दीन से क्रमशः अनुप्राणित माना है ।
इस प्रकार का' शरेणिविभाग नया, विचारोत्तेजक ओर प्रसादजी की
'प्रतिभा का परिचायक है) हिन्दी के साहित्यिक ओर दार्सनिक
सेवं में प्रायः यह् अश्रुतपूर्व है । अवदय दी ये श्रेणियाँ बहुत दृष्टि
से परस्पर नितांत विरोधिनी नदी ईँ, देसी भी संभावनाएँ: ध्यान में
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