प्रमुख देशो का आर्थिक विकास | Pramukh Desho Ka Aarthik Vikas

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Pramukh Desho Ka Aarthik Vikas by डॉ श्यामलाल माडावत - Dr Shyamlal Madavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 बेकार छोड दिथा जाता था, अर्थात्‌ उस पर खेती नहीं की जाती थी । अठारहवी भतान्दो मे जनसस्या भी तेजी से बढ रही थी जिससे खाद्यान्नो की माँग बढ़ने लगी तथा उनकी कमी पैदा होने लगी । इसका परिणाम यह हुआ कि साद्यान्नों के मूल्य चढने लगे और यह अनिवायं हो गया कि उनके उत्पादन मे वृद्धि कौ जाये । यह्‌ उत्पादन की वृद्धि पुराने तरीको मे सम्भव नही थी । ब्रिटेन में जनसंख्या वृद्धि (जनसब्या लाखों में) वर्प {नलया | कं जषा _ वर्ष जनसब््या 1169 108 1870 316 1780 126 1880 350 1800 157 1890 382 1810 19 1900 415 1820 210 1910 452 1830 241 1920 428 1840 269 1930 448 1850 275 1950 506 1860 291 उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि इग्लेण्ड की जनसख्या 1760 से 1820 की 60 वर्षों की अवधि मे दुगुनी तथा 1860 मे 1760 की तुलना मे तिगती हो चुकी थी । जनसख्या के इस बढ़ते हुए दबाव की स्थिति में एक एकड श्रुति भी बेकार करना सम्भव नही रह गया था । भूमि का पुनर्गठन (८००४०॥४४६७) तथा बाडा- वन्दी (ट01050ा८) अनिवार्य वन चुके थे। 1801 में एक सामान्य बाडाबन्दी अधिनियम (८0506 800) पारित किया गया । खुले खेत समाप्त हो गये तथा ग्रामीण क्षेत्र में सेतो के चारो ओर वाड़ें लगा दी गयी । इग्लैण्ड में कृपि-क्रान्ति होने से पहले वहाँ के ग्रामीण क्षेत्रो मे समाज तीन श्रेणियो मे कटा हुमा था-- () मेनोरियन लाड या जागीरदार, (1) पूर्ण स्वामित्व वाले किसान (08 ९700068), तथा (0 श्रमिर्क । उन्लीसवी झताब्दी में इन श्रेणियो के सदृ बनुरक्षक (ऽणप८), आतामी कषकः (९००८६ {वपपलयऽ) व श्रमिक हज करते ये 1 भमि के पुमर्गेन तथा वाडो (धालण्डण्ड) की स्थापना से कृपि में नये प्रयोगों को प्रोत्साइन मिला । अठारहवी दाताब्दी में खेती के काम मे लिए जाने वाले पद्यु की मसल में सुभार पर भी काफी ध्यान दिया गया । गौ मास का उत्पादन करने के लिए बैतो की नस्ल तैयार की गईं । अठारहवी झताब्दी में इन बैलो की नस्ल में सुधार से उनका वजन दुगुना हो गया ! इसी तरहूं भेड-मास तथा ऊन के लिए भेडों का प्रजनन किया गरया। भेडो की नस्ल-सुधार के प्रयासों से इसी अठारहवी शतान्‍्दी में




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