अर्थशास्त्र के सिद्धांत | Arthsastra Ke Siddhant

Arthsastra Ke Siddhant  by वीरेन्द्र त्रिपाठी -Virendra Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श६य शर्थराश्च का याजा भिना चैव ेवल उत्तरप्रदेश तक सौमित द या मारवाड़ी पगद्धियो गीर लाख वी चूड़ियों वा बाजार जिनका माँग राजपूताना व मेयाड़ के लोगी में दी दीती दै । (ल) अनतर्ग्रीय बाज़ार या संसार व्यापी वाजनार्‌ (तत कलप) यदि किसी वस्तु के व्यापारियों की श्ापस की प्रतियोगिता सुसारय्यापी दो तो उस वस्तु के बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार कहते हैं। साधारणुतः उन वु वा श्रन्तर्ष््रीय बाजार होता दै जो शीघ्र नष्ट नहीं होती हैं, जिनकी माँग सारें संसार में है दौर जिनमें बदनीयता होती है | सैसें सोना, चाँदी, गेहूँ आदि चस्ठुओं के बाजार | विज्ञान तथा यातायात के साधनों वी उन्नति से ग्राजकल प्रत्येक वस्तु के बाजार के स्षेत्र का विस्तार बट रहा है | कोल्ड स्टोरेज के द्वारा नाशयान वस्तु भी त्रपि समय तकृ रली जा छती है| जदाज, मोटर, रेल गदि फे दाग एके स्थान का सामान दूसरे स्यान पर श्राखानी से तया धूत कम एमयमे मेदा जा सकता ६। साय हो रेडियो, टेलीफून तार श्रादि के दादा एक स्थान का समाचार दूसरे स्थान पर शी मेता जा सकता है । इन चीजों वी उन्नति से मिंठी मी वह्तु के दो स्थानों के मूल्य का झन्तर घटता जा रहा दै श्रीर इस प्रकार बाजार का क्र बढ़ता जा रहा 1 पूर्णा वथा सपूरयं वाजार (1/2... प्रतियोगिता की दृष्टि ले बाजारों को पूण तथा श्रपूर्ण दो भागों में बाँटा जा सकता है। यदि किसी वस्तु के व्यापारी दिंसी वस्तु में कय-विकय के लग-ग्रलग भावों को शीधातिशीप्र जान लेते दें रौर वेचनेवालो तथा खरीदनेवालों की सग्या बहुत अधिक हैं श्रीर प्रत्येक खरीदार कम से बम दामों पर बेचभवाले विक्रेता से खरीद कर सग ती ऐसे बाजार में पुक दी मूल्य होने का मुगाव रदेता है। इस प्रकार के बाजार को पशं बाजार ( रिटाटिट 47.60) कहते हैं| ऐसे बाजर के लिए यातायात शरीर पतर-व्ययद्दार इत्यादि के सब साधनों की उन्नति वा दोना सन्त आयर्यक दै। इससे आइक तथा निकेता को बाजार की स्थिति का पता शी चलता रदता है। इसके श्रतिश्क्त पथ थाजार के लिए माँग या पूर्ति पट किं मी प्रकार का नियर्तणु नहीं दोना चाहिए डिससे कि मूल्य पूर्ण प्रतियोगिता से तय दो सके । जय इस प्रकार का बाजार होगा दो कॉमर्स रुमता को आस होने लगेगी ( यथपि कमम ये कराने-गने के खर्च का ग्रन्तर बना रदेगा { } परत यदि व्यापारियों को किसी पसु कै वाजार के ठभ मोल-भाव मनन मकार म नहीं हैं शरीर रहन रे आलरस्प या झ्ाने-जाने के खर्चे के कारण लोग सबने सस्ते कल उस वरतु को न खरीद सकें श्रीर पूर्ण प्रतियोगिदा संझर नी यो उस बाजार की श्रपणं याचार (1 0ाएटल्त अमरो बहने हैं । (इस पिपय की दिशे' प ५ विशे जान! श्रागामी दो तमि श्रव्या पटए्‌ ।) ॥ +.




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