श्री भागवत दर्शन | Shri Bhagwat Darshan

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Shri Bhagwat Darshan  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुटिल मंत्रियो के कुमत्र से कसानुयायियो द्वारा करर कमं ११. कन्तु दूतनौ हौ तो चात नही है, इन पड्यन्तरो मे देवत्ामो कां डी प्रघान हाथ हैं।”” इस पर मोटा-सा मोटी बुद्धि वाला मुखें मन्नी बोला-- महाराज, भोजराज ! आपने भी किन नपुसको की वात कही । आप जानते ही हैं, देवताओ के बच्चे नही होते, क्योकि ये सबके सब नपुसक हैं । इतने देवासुर सम्राम हए कमी देवता भ्रसुरो -के सम्भल ठहरे ह! देता भव मी भ्रापकरे घनुप की प्रत्यश्छाके शब्द को सुनकर सदा सिर पटकते रहते हैं । देवासुर सग्राम मे जय युद्ध करते समय मापने समस्त सुरो को भ्रपते दिव्य वाणो द्वारा बाँध दिया, तब जो जीना चाहते थे, जिन्हे प्रपने प्राण स्मारेये, वे युद्ध छोडकर भाग गये । जिनको भागने का अवसर नहीं मिला, एसे भपमीत देवता भपने मख शस्त्रो को फैककर नि शस होकर मत्यन्त दीनता-पूेक हाय जोड, सिर नवाये बाल बेरे, कच्छ खोलते भरापकी शरणमे भ्राये मौर दोनता पूर्वक आकर कहने लगे -' हम भयमभीत्त हैं, आपकी शरण हैं, माप हे शरणागत समकर क्षमा करे, हमरो रक्षाकरं | - भापस वसेबोघे वीरतोर्हैहौ नहीकिजो भी शबर सम्मुख भा गया उसी का सहार कर दिया । माप तो सम्मुख लड़ने वाले वीराभिमानियो से टक्कर लेते हैं, आपके साथ युद्ध करते-करते विपक्षों का रथ टूट गया हो, तो आप तुरन्त युद्ध बन्द कर देते हैं । अथवा झाप रथ पर हो लोर कोई पेद भ।पते युद्ध करने भ्रावे तो, आप युद नीति की रक्षा करते हए पदाति से युद्ध नही करते । युद्ध करते-करते जिन्हें प्र शासन विस्मरण हो गये हों, उनके साथ भी आप नहीं लड़ते । जो भयभीत होकर भागने का उपक्रम करे रहा हो, उसको चेष्ठा देखकर ही जप कमा करदेतेर्दै। जो युद्ध में अन्यमनस्क हो या रण से मुख मोड




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