खुदा सही सलामत है | Khuda Sahi Salamat Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जुदा सही सलामत है / 17 मी याद उसके सीने पर एक वजनी सिल की तरह सुबह तक पड़ी रही । सुबह तक उसे सगता रहा, जाते-जाते भूत यह कह गये हैं--नीम के नीचे से चक्की उठा लो शिवलाल ! शिवलाल ने तय भी कर लिया था कि वह्‌ चर्वी उठा कर कही दूर चला जायेगा, मगर इस बीच कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं कि वह वही पड़ा रह गया । एक दिन नगर महापालिका ने अचानक कुआं भरना शुरू कर दिया और शिवलाल की माँ शिवलाल का ५11 कर आयी । ः इस मीच देश ने बहुत तरकु, टकी 1 गर इते-द् गुप द दभग्वि महा जायेगा कि देश में हो रहे विकॉसें:कार्यों के बहुत हट्को-प्रभाव इस गली के वासियों के जीवन पर पड़ रहा था । गतीं के औसत आदमी के घर में आज भी न पानी का नल था, न विजली का कनेक्शन । शाम होते ही घरों में जगह जगह जुगुनुओं की तरह ढिवरियाँ टिमटिमाने लगतो । अगर भ्रुले-भटके गली में दो-एक जगह सड़क के किनारे बल्व लगा भी दिय। जाता तो बच्चे लोग तब तक अपनी निशानेवाज़ी की आज़माइश करते रहते, जव तक वल्व टूट न जाता । दरअसल गली के लोग सदियों से अंधेरे में रह रहे थे ओर अब अंधेरे में रहने के आदी हो चुके थे । अब उजाला उनकी आंखों में गड़ता था । यही वजह थी कि अगर बच्चों से बत्व फोड़ने में कोताह्दी हो जाती तो कोई रोशनी का दुश्मन चुपके से बल्व फोड़ देता । रोशनी में जीना उन्हें ऐसा लगता था जैसे निर्वसन जीना । रोशनी से वचने के लिए लोग टाट के पढें गिरा देते । टढाट इस गली का राष्ट्रीय परिधान था । दरअसल टाट चिलमन भी था और चादर भी । टाट पायजामा भी था और लहंगा भी । टाट बिस्तर था भौर कम्बल भी । अक्सर लोग टाट पर सोते थे और टाट आओढ़ते थे । टाट के साइज़-वेसाइज् के परदे छोटी-छोटी कोठरियों के घाहर जैसे सदियों से लटक रहे थे । टाट के उन पदों पर टाट की ही थिगलियाँ लगी रहती थी । साँझ घिरते-घिरते गली में आमदोरप्रत बढ़ जाती । मस्जिद से अजान की आवाज़ सुनायी दी नहीं कि लोग जल्दी जल्दी बावजू होकर मग्रिवकी नमाज़ में मशगूल हो जाते । बड़ी-बुढी औरतें दालान में एक तरफ़ चटाई बिछा कर नमाज पढ़ने लगती । दिया वत्ती का समय होते ही छोटे-छोटे बच्चे पृश्नी बोतलें थामे मिट्टी के तेल की कतार में जुड़ जाते। किसी बोतल की गर्देन टूटी होती या नीचे से पेदे की एक परत । इन्हीं बच्चों को सुवह आंखे मलते हए देढ़े-मेढ़े गिलास




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