श्रेणिक राजा की कथा | Shrenik Rajaki Katha

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Shrenik Rajaki Katha by डॉ० ब्रह्मदेव शर्मा - Dr.Brahmdev sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथाकोश | १७५ रथ तपस्या ~~~ ~~ २०-पद्यरथ राजाकी कथा । (2 २ द्र, धरणेन्द्र; विग्राधर, राजा, महाराजा- ओं द्वारा पूञ्य जिनभगवानके चरणोंको नमस्कार कर मं प्रथ राजाकी कथा चि- ॥ खता हूं, जो प्रसिद्ध जिनभक्त हुआ हैं। मगघ देशके अन्तर्गत एक मिथिला ना- मकी सुन्दर नगरी थी। उसके राजा थे पझरथ । व बड़े बुद्धिमान्‌ और राजनीतिके अच्छे जाननेवाले थे, उदार और परोपकारी थे। सुतरां वे खूब मसिद्ध थे । एक दिन प्रथ शिकारके लिये वनमें गये हुए थे । उन्हें एक खरगोश दीख पढ़ा । उन्होंने उसके पीछे अपना घोदा दौड़ाया । खरगोश उनकी नजर बाहर होकर न जाने कहां अद्य हो गया । पञ्चरथ भाग्यसे कारगुफा नामकी एक गुहामें जा पहुँचे । वहाँ एक मुनिराज रहा करते थे। वे बड़े तपस्वी थे । उनका दिव्य देह तपके प्रभावसे अपूर्व तेज धारण कर रहा था | उनका नाम था सुधम । प्मरथ रत्नत्रय विभूषित ओर परम शान्त युनिराजके पवित्र द्ग नसे बहुत श्ञान्त दए जैसे तपा हुआ लोहपिंड जठसे शान्त हो जातादहै। वे उसी समय घोडेषरसे उतर पड़े और मुनि- राजको भक्तिपूरव॑क नमस्कार कर उन्होंने उनके द्वारा धमका “पवित्र उपदेश सुना। उपदेश उन्हें बहुत रूचा । उन्होंने सम्यक्त्व पूरवंक अणुच्रत ग्रहण किये । इसके बाद उन्होंने मुनिराजसे पूछा-हे मभो हे! संसारके आधार ! कहिये तो




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