हिन्दू विवाह विच्छेद सम्बन्धी क़ानून | Himdu Vivah Sambnadhi Kaanoon

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Himdu Vivah Sambnadhi Kaanoon by विशाल वर्मा - Vishal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दू-विवाह-विच्छेद-सम्बन्धी कानून १७ ब्थवा स्त्री की ओर से किसी छावश्यक कारण के होने पर, म्रथम श्रवस्था मे एक वपे अलग रहने की भयुमति देकर उसके वाद फिर सम्बन्ध-विच्छेद्‌ क्ररार दे दिया जाय। इस एक वपे के समय में गर वे अपने भगडे निपटाकर पति-पत्नी वनकर रहना चाहें तो उनके राते मे कोई रुकावट कानूनन नहीं आनी चादिये । (४) सम्बन्ध-विच्छेद्‌ के उन मुकदमों मे जहां सन्तानो का प्रश्न सम्मुख झावे उनमें छोटे-छोटे बच्चे तो माता के साथ ही जाने चाहिएं। शेष जो पढ़ते हैं अथवा नौ-द्स बप से उपर की श्ायु के हैं, उनका परिस्थिति-विशेष के ाधार पर निणुय होना चाहिये। (५) छरगर न्यायाधीश यह समझता है कि पति झपनी पत्नी को निकालने का दोपी है श्रीर वह इस स्थिति में है: कि बह स्त्री और बच्चों के खरे के लिए रुपया दे सकता है; तो विच्छेद की शर्तें में माता तथा बच्चों के भरण-पोपण की व्यवस्था भी होनी चाहिए । स्त्री को एक निश्चित रकम; जो उसकी श्यावश्य- कतानुसार चटाई-वदाई जा सकती है, सरकार की ओर से मासिक ख्प में मिलनी चाहिए और सरकार उसके पति से वह रकम चसूल करती रहे । जां यद्‌ सम्भव नदी, वहां स्त्री के माता-पिता या अन्य सगे-सम्बन्धियो पर उसका भार डालना । चाहिये । खगर करटी भी कोई प्रबन्ध नहीं टो पाता, तो सरकार को पने कोप से उसका प्रबन्ध करना चाहिये ¦ रेसी स्थिति कभी कभी ही पेदा होगी । वच्चों के पालन-पोषण का भार समाज




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