नीति - विज्ञान | Niti Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
404
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-परथेदा । ष
जिनके विचार हमसे मिलते हैं । हाथ पकड़ कर हम उनकी सहायता न
भी करें तौभी केवल मात्र उनके पथमें हमारे किसी बाधाके न रखनेसे
क्या उनका कम उपकार होता है !
अपने विचारोहीके कारण मनुष्यने दैविक ओर वैदाचिक दोनों
प्रकारका काम किया है । उसने संसारहितके छिए अपना प्राण तक
परित्याग किया है । अपने विचारोहीके कारण उसने देश विदेश
विजय किये हैं, बच्चों और च्निर्योको अघ्निके हवाटे किया है तथा
काफिरों ओर अविश्वासियोकी हत्या की है ।
ज्ञानका माहात्म्य अनन्त है । हमारा प्रत्येक कार्य्य ज्ञानका ही
नतीजा है | प्रयेकं काम ज्ञानरूपी बीजका ही फल
मनन और फूठ है । अज्ञान ही सरे दुःखो ओर क्ठेशोका
कारण है| प्राकृतिक नियर्मोके न जाननेके कारणसे ही
मनुष्य अनेकों दुःख झेठता है । उदाहरणके ढिए आप बीमारियों-
हीको लीजिए । क्या प्राय: सभी बीमारियोंकी जड़ हमारा अज्ञान नहीं
है ? यदि हमे जीवनके सभी नियम पूर्णतः माम होते--यदि हमें
खाने पीने या रहने सहनेकी उत्तम रीति माद्धम होती-तो क्या हम
सहजम ही इतनी बीमारियोके लक्ष्य वन सक्ते इसी कारण हमारे
रानि ज्ञानको इतनी महत्ता दी है ओर अज्ञानको समस्त दुःखोका
कारण ठहराया है ।
त क्या ज्ञानका वह् अदा जिसके दारा मनुष्यांके परस्परका कतन्य
स्थिर होता है एकदम व्यर्थ है १ नीतिशाख्र सदाचरणका
दाख्त्र है। यदि हमें हर बातमें ज्ञानकी इतनी आवश्य-
कता है तो कया हमे इस शल्लकी कोई जरूरत नहीं !
क्या हमें नीतिके स्वरूप और उत्पत्तिके सम्बन्धमें कुछ भी जानने-
नीति-विश्ञान-
की महत्ता ।
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