नीति - विज्ञान | Niti Vigyan

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Niti Vigyan  by बाबू गोवर्धनलाल - Babu Govardhanlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-परथेदा । ष जिनके विचार हमसे मिलते हैं । हाथ पकड़ कर हम उनकी सहायता न भी करें तौभी केवल मात्र उनके पथमें हमारे किसी बाधाके न रखनेसे क्या उनका कम उपकार होता है ! अपने विचारोहीके कारण मनुष्यने दैविक ओर वैदाचिक दोनों प्रकारका काम किया है । उसने संसारहितके छिए अपना प्राण तक परित्याग किया है । अपने विचारोहीके कारण उसने देश विदेश विजय किये हैं, बच्चों और च्निर्योको अघ्निके हवाटे किया है तथा काफिरों ओर अविश्वासियोकी हत्या की है । ज्ञानका माहात्म्य अनन्त है । हमारा प्रत्येक कार्य्य ज्ञानका ही नतीजा है | प्रयेकं काम ज्ञानरूपी बीजका ही फल मनन और फूठ है । अज्ञान ही सरे दुःखो ओर क्ठेशोका कारण है| प्राकृतिक नियर्मोके न जाननेके कारणसे ही मनुष्य अनेकों दुःख झेठता है । उदाहरणके ढिए आप बीमारियों- हीको लीजिए । क्या प्राय: सभी बीमारियोंकी जड़ हमारा अज्ञान नहीं है ? यदि हमे जीवनके सभी नियम पूर्णतः माम होते--यदि हमें खाने पीने या रहने सहनेकी उत्तम रीति माद्धम होती-तो क्या हम सहजम ही इतनी बीमारियोके लक्ष्य वन सक्ते इसी कारण हमारे रानि ज्ञानको इतनी महत्ता दी है ओर अज्ञानको समस्त दुःखोका कारण ठहराया है । त क्या ज्ञानका वह्‌ अदा जिसके दारा मनुष्यांके परस्परका कतन्य स्थिर होता है एकदम व्यर्थ है १ नीतिशाख्र सदाचरणका दाख्त्र है। यदि हमें हर बातमें ज्ञानकी इतनी आवश्य- कता है तो कया हमे इस शल्लकी कोई जरूरत नहीं ! क्या हमें नीतिके स्वरूप और उत्पत्तिके सम्बन्धमें कुछ भी जानने- नीति-विश्ञान- की महत्ता ।




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