सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाग - 3 | Samyaggyan Chandrika Bhag - 3

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Samyaggyan Chandrika Bhag - 3 by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका | | है जहरि कोऊ कहै कि इस -कायं -विष“विशेष-हित हो-है सो सत्य, परंतु मदबुद्धि त कही भूलि करि अनन्यथा रथं लिखिए,तहां महत्‌ पाप उपजने तै-्रहित-भी तो होड -? ताको कहिए है --यथाथं सवं पदाथेनि का ज्ञातता-तौ केवली भगवान, है ग्रौरनि क ज्ञानावरण का 'क्षयोपशम के -अचुसारी ज्ञान है, -तिनिकौ कोई अर्थ “अन्यथा भी प्रतिभासे, परतु जिनदेव का -एेसा <उपदेश है --कुदेव, कुशरु, कुशास्त्रनि के वचन को प्रतीति करि वा:हठ करे वा क्रोध, न्मान्त, माया, लोभ करि वा-्हास्य, भयादिक करि 'जो अन्यथा -श्रद्धान कर वा उपदेश देइ, -सो- महापापी है + अर विशेष ज्ञानवान गुरु के निमित्त बिना, 'वा अपने विशेष -क्षयोपशमःविना -कोरई्‌ सृक्ष्म भ्र्थं श्रन्यथा प्रतिभासे श्रर यह ऐसा जाने कि जिनदेव का उपदेश ऐसे ही है, 'ऐसा जानि कोई सुक्ष्म प्रथ कौ अन्यथा श्रद्ध 'है -वा “उपदेश दे तौ -याकौ महत्‌ पाप न होइ । सोद इस ग्रथ विषे भी श्राचायं करि कहा है - संम्माडइट्री जीवो, -उवइट्ठं- पवयणं तु सहहरदि । सह्हदि श्रसन्भावं, श्रजाणमाणो .गुरखियोगा -।२७।। जीवकाड ।। बहुरि कोऊ कहै कि --तुम -विशेष.ज्ञानी त प्रथ का यथार्थं सवं अर्थ का निरय करि टीका करने का प्रारभ क्यो न कीया ? ताकौ कहिये है - काल *दोष' ते केवली, श्रुतकेवली का तौ इहा झ्रभाव ही भया । बहुरि विशेष ज्ञानी भी विरले पाइए । जो कोई है तौ टरि क्षेत्र चिषे है, तिनिका सयोग-दुर्लभ । अर आयु, बुद्धि, बल, पराक्रम भ्रादि तुच्छं रहि गए । ताते जो बन्या सो श्रर्थ का निर्णय, कीया, अवशेष जैसे है तैसे प्रमाण है बहुरि कोऊ कहै कि - तुम कही सो सत्य, परतु इस ग्रथ विषे जो चूक होदगी, ताके शुद्ध -होने का किद्‌ उपाय भी-है ताको कहि्यि है - एक उपाय यहु कोलिए है - जो विशेष ज्ञानवान पुरुषनि का प्रत्यक्ष तौ सयोग नाही, तात परोक्ष ही तिनिस्योएेसी बीनेतीकरौीहौ किमौ मद बुद्धि हौ, विशेषन्ञान रहित हौ, अ्रविवेकी ' हौ, शैंब्द, न्याय, गणित, धार्मिक आदि ग्रथति का विशेष श्रभ्यास मेरे नाही है, ताते शक्तिहीन हौ, तथापि धर्मानुरागके वश ते टीका करने का विचार कौीया,-सो या विषे जहा-जहा चूक 'होइ, अन्यथा श्रर्थे होइ, तहा-तहा मेरे ऊपरि क्षमा करि तिस श्रन्यथा श्रथ कौ दरूरि केरि यथार्थं अर्थं लिखना | एेसे विनती करि जौ चूके होडगी, ताके शुद्ध -होने का उपाय कीया है | बहुरि कोऊ कहै कि तुम टीका करनी विचारी सो तौ भला कीया, परततु एसे महान ग्रथनि की टीका सस्कृत ही चाहिये 1 भाषा विषे याकी गंभीरता भासे नाही ।




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