समाजशास्त्रीय चिन्तक एवं सिद्धान्तकार | Samajashastriy Chintan Avam Siddhantakar

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Samajashastriy Chintan Avam Siddhantakar by हरिकृष्ण रावत - Harikrishn Ravat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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44270, वप्रद्वठः लदाहकष्वं / विभ्रमित होने के बाद 192 मे वे पुन प्रौकर्टं लौट आये ओर कात एव प्रायड एर डौ लिट करने के लिये कार्य करने लगे। किन्तु सन 1991 में उनके प्रथम शोध प्रवध के अस्वौकाए किये जाने के उपणन्त उन्दने दूमय शोध प्रथ करकेगाई पर लिखा जो मन्‌ 1933 में उसी दिन प्रकाशित हुआ जिस दिन हिटलर में जर्मनी के शासन की बागडोर सभाली । जैसे ही उनके इस शोध प्रबंध को स्वीकृति मिली, वे मैक्स होखाडमर के निदेशक बनने के बाद 'सामाजिक शोध के प्रैंकफर्ट सस्थान' में आ गये। नाजीवाद के बचने के लिये सन्‌ 1934 में यह स॒स्थान ज्यूरिवि आ गया और आडानों इग्लैण्ड आ गये । सन्‌ 1938 में वे पुन इसी सस्थान मे आ गये जो तव तक अमेरिका पहुँच गया था और यहा उन्होंने पॉल लेजार्सफ्रेड के सानिप्य में एक रेडियो रिसर्च प्रोजेक्ट पर कार्य किया । अमेरिका में रहे हुए उन्होंने कई अन्य शोध योजनाओं पर भी कार्य किया । मित्र राष्रों की विजय के बाद वे पुन पश्चिमी जर्मनी लौट आये और प्रैंकफर्ट शोध सस्थान के तत्कालीन निदेशक होखाइमर के मेवानिवृत होने के बाद वे इस सम्यान के सन 1950 में निदेशक वन गये । आडोगों, सपाजशासरियों के वीय, आधुनिक समाज कौ 'जनपुज सस्कृति' (मॉस ल्व) कौ. अपन आलोचनाओ के लिये सुप्रसिद्ध रहे है। उन्होने इस सम्कृति को सास्कृतिक उद्योग का कार्य और जनमपृह के जोड़-तोड़ की उपज माना है। उन्होंने एक म्थान पर सकेत दिया है कि सास्कृतिक उद्योग के भीतर हमारी नई सास्कृतिक पदावली दुर्भेद्र हो जाती है। ही से जुड़े हुए वरण्ड (लेबल) एेसौ टी दु्भेय पदावती टै । ये पदावली उन घौजों पर बोई रोनी नरी डालनी जिन्‌ एर ये चिपकी हेती । ये वमनुओं से हमारे सत्य सबधों के खिलाफ पढें का काम करती है । वे सामाजिक वर्ता ओैर भोक्ता के वौव भेद मिटा देती है। आडानों आगे कहते हैं कि उपभोत्ता-पूजीवाद में बिना सोचे-विचारे घीजों वी स्वीकृति विज्ञापन को स्वय “समग्रतावादी' बना देता है । आधुनिक समाज की आलोचनाओं में उन्होंने जनसचार के साधनों वो अपना मुख्य निशाना बनाया क्योकि इमौ के द्वा व्यक्तियों के एक ऐमे 'जनपुज समाज (पास सोसाइटी) की रचना होती टै जो दमनात्मकता और यथास्थितिवादी विं मानवीयता को प्रोत्साहित करता है । आपनिक सस्वृति के विश्लेषण में आडोनों ने एक ओर अस्त्रित्वाद की व्यक्तिपरकता से, तो दूसरी ओर विज्ञानवाद वी वस्तुपरकता से बचने का प्रयल किया है, किन्तु जैसे-जैसे वे आधुनिक विश्व के प्रति नियाशावादी होते गये, उन्होंने अपने विचारों में सशोधन किया। आधुनिकता के बारे में उनका सर्वाधिक स्पष्ट वक्तव्य हमें उनकी पुस्तक 'मिनिमा मोग़लिआ' (1951) में देखने को मिलता है जो मूक्नियों का एक सकलन है । आडोनों आधुनिक 'आलोचनात्पक मिद्धातत' (क्रिटिकल विओ) के प्रणता रहे है। उनकी प्रमुख रुचि आमूल परिवर्दन 6ििकल चेंज) में थी, किन्तु उन्होंने अनुभववाद (इम्परिसिजम) और कठोर एवं अनम्य वैज्ञानिक विधियों को आमूल परिवर्तन उत्पनन करने के लिये अनुपयुक्त माना है। उन्होंने इस बारे में लिखा है कि अब तक सभी दार्शनिक तत्वमीमासा और ज्ञानमीमामा के क्षेत्र किमी ऐसे नितात आदय तर्क को खोजने में लगे रहे हैं जिसके आधाए पर सम्पूर्ण सूष्ि का विश्लेषण किया जा सके, किन्तु उनका यह प्रयास निर््थक रहा है क्योंकि ज्ञान के क्षेत्र में ऐसा कोई मूल तर्क सभव हो नहीं है। यही नहीं, यह प्रयास खतरनाक भी है क्योंकि यह मानव को जड़ वस्तु बना कर सभी को एक ही ढॉने में ढालने ची कोशिश है जो सर्वाधिकारवाद (टोटैलिटेरिजनिजम) और दमन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती




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