आयुर्वेदीय विषय - कोश खंड 3 | Ayurvediya Kosa Vol - 3
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
793.95 MB
कुल पष्ठ :
707
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एय्रोपाइरम
पक लपल न पिफिकुशपटएएनपलसिसेफकस गए पर पकिपसमफंगी
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कक बना ब्कलपपकथलकिका
निलनिकनिकनिन न अपयासावनामनिनथ वश त हनन
दण ब्रा कर
(7, 0. (लक्रक्रनाकध्श्यरो
उत्पत्तिस्थान---यह घास झ्ाष्ट लिया तथा परत
_ तथा उत्तरीय असेरिका के उपनिवेशोस उपजर्ती है ।
इस घास को जड़ ऑओपधाथं व्यवहार में श्राती हैं 1.
_ इसे चसंत-ऋतु में इकट्ठा करते हैं श्रार इस पर से
_तंतु झाडि प्रथक कर लेसे हैं।
जड़-इलके पीत वणके कद से 2 इं
-- से .- इंच तक होता हैं ।
हर दे
.... गत्येक इुकड़े को लगाई में एक रेखा. हाती ह
ओर बह सध्य से खालों होतीं हैं । इसमें से किसी
प्रकार की गंघ नहीं थ्ाती, स्वाद फिंचित सुर
:. होता हैं । इसमें से गोंद की तरह एक. सव्व निक-
7 सिनका व्यास घ्राय
... लता है, जिसे टिरिसोन ( विष डी। 0 अथात्
ही र्वतृण सत्व कहते हं। .
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_..... (१) डिकॉक्टम् ८योपाइराइ-त 260८०0०0ए320
ही 87007. (ले ) । डिकॉक्शन ऑफ एग्ो-
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का जोश दे हशीशतुल-
....... कलब- (०) । जोशाँदहे ग्याह सग-र फ्रा० )
( 'ं० ) | रचतूण क्ाथ
............. निमाणु-बिधि--एम्रोपाइरम् अधात् कोचग्रास
ही गा की जड़ के छोटे-छोटे काटे. हुये टुकड़े कड़े
इंच लंबे हुक,
१७४८
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बरसपनपसह:
. हमाशतुल . कर
पिनन्कसनयिममकपनन्ट्रंनकरमसियस्रट
डनकरस्दर्यदरर-पसतवलरवसस्थ्रक्रससकाकयरनासससवदसवकयदलममलयराम्सर:
नलन्यमाटवि दरसिनथमद
किट सम विवेक कि हे.
अन्ममयररािरियं «जप -पनयरपना
( ग्रं० ) 1 र्वद्ण की तरल रसक्रिया । खुला
द्शीशतुल कल्ब । सय्याल उसारा ग्याह संग |
शतानासीटर 2
से हीन होती है
एम्रोपायरोन-री पेंस--[ ले०
मजल--ू मे कन्किगो मष्दी व.
एजिलेंप्पाल--[ वा ] ( 15008 0001
एजीसेरास-प्रेटर--नु अं० 20
कि व वि कमतशकारं कि यम
[नसाए वि नदणर्य्ापाइरसू का. सेंप २० ही
न्म्व्च् चूण २०. श्राउंस, एलकाहल ० ०७ है ;
अर पानी श्रावश्यकतानुसार । पहले नूर
पी
व!
_ तीन बार करके १०० श्ाउस खोलते हुए: प गा
पकाएँ अथवा किंचित, उप्य स्थान में देर तक...
मिंगो रखें और इससे ७ द्रव
पट्टी, उसे इतना...
कि १५ श्राथ्स हु विष रह पर
जाय । फिर उससे ४ दास एलकोहल मिलाकर
उसे छान से 1. बस
मात्रा--- से डाम-( २ से ८ घन .
गुण-घम तथा पुथ्ीगनन हर
यह एक उत्क्रष्ट स्निग्चतासम्पादक :( 102171-
(02101 9 ्रोर सुख्र-प्रबर्तंक झोषघ है । इसका
अधिकतर चर्ति-प्रदाद और पूयमेह सें देत हैं।
[2---कहते हैं कि इसकी ताजी जड़ में ही
क्र गुण वत्तसान होता है । सूखी जड़ उक्त गुण
ि.छ फ211
श्वानतृण । दे० “एयोपाइरस' ।
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एजीसरास-मेजस -[ले० 3 ०81- है. बेड । हलस हर
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