आयुर्वेदीय विषय - कोश खंड 3 | Ayurvediya Kosa Vol - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एय्रोपाइरम पक लपल न पिफिकुशपटएएनपलसिसेफकस गए पर पकिपसमफंगी ..... फुि०छ-एर8.58 (अं० 3 | स्याहसग ( फ़ाण् 2 | .. इदानदुश, कुत्ताघास-हिं ५ कक बना ब्कलपपकथलकिका निलनिकनिकनिन न अपयासावनामनिनथ वश त हनन दण ब्रा कर (7, 0. (लक्रक्रनाकध्श्यरो उत्पत्तिस्थान---यह घास झ्ाष्ट लिया तथा परत _ तथा उत्तरीय असेरिका के उपनिवेशोस उपजर्ती है । इस घास को जड़ ऑओपधाथं व्यवहार में श्राती हैं 1. _ इसे चसंत-ऋतु में इकट्ठा करते हैं श्रार इस पर से _तंतु झाडि प्रथक कर लेसे हैं। जड़-इलके पीत वणके कद से 2 इं -- से .- इंच तक होता हैं । हर दे .... गत्येक इुकड़े को लगाई में एक रेखा. हाती ह ओर बह सध्य से खालों होतीं हैं । इसमें से किसी प्रकार की गंघ नहीं थ्ाती, स्वाद फिंचित सुर :. होता हैं । इसमें से गोंद की तरह एक. सव्व निक- 7 सिनका व्यास घ्राय ... लता है, जिसे टिरिसोन ( विष डी। 0 अथात्‌ ही र्वतृण सत्व कहते हं। . -सम्मत योग ( (लक कराधकूचरदरीफाार _..... (१) डिकॉक्टम्‌ ८योपाइराइ-त 260८०0०0ए320 ही 87007. (ले ) । डिकॉक्शन ऑफ एग्ो- : .. पायरस 122000907 01. औै छए01प1पा71 का जोश दे हशीशतुल- ....... कलब- (०) । जोशाँदहे ग्याह सग-र फ्रा० ) ( 'ं० ) | रचतूण क्ाथ ............. निमाणु-बिधि--एम्रोपाइरम्‌ अधात्‌ कोचग्रास ही गा की जड़ के छोटे-छोटे काटे. हुये टुकड़े कड़े इंच लंबे हुक, १७४८ लि की बरसपनपसह: . हमाशतुल . कर पिनन्कसनयिममकपनन्ट्रंनकरमसियस्रट डनकरस्दर्यदरर-पसतवलरवसस्थ्रक्रससकाकयरनासससवदसवकयदलममलयराम्सर: नलन्यमाटवि दरसिनथमद किट सम विवेक कि हे. अन्ममयररािरियं «जप -पनयरपना ( ग्रं० ) 1 र्वद्ण की तरल रसक्रिया । खुला द्शीशतुल कल्ब । सय्याल उसारा ग्याह संग | शतानासीटर 2 से हीन होती है एम्रोपायरोन-री पेंस--[ ले० मजल--ू मे कन्किगो मष्दी व. एजिलेंप्पाल--[ वा ] ( 15008 0001 एजीसेरास-प्रेटर--नु अं० 20 कि व वि कमतशकारं कि यम [नसाए वि नदणर्य्ापाइरसू का. सेंप २० ही न्म्व्च् चूण २०. श्राउंस, एलकाहल ० ०७ है ; अर पानी श्रावश्यकतानुसार । पहले नूर पी व! _ तीन बार करके १०० श्ाउस खोलते हुए: प गा पकाएँ अथवा किंचित, उप्य स्थान में देर तक... मिंगो रखें और इससे ७ द्रव पट्टी, उसे इतना... कि १५ श्राथ्स हु विष रह पर जाय । फिर उससे ४ दास एलकोहल मिलाकर उसे छान से 1. बस मात्रा--- से डाम-( २ से ८ घन . गुण-घम तथा पुथ्ीगनन हर यह एक उत्क्रष्ट स्निग्चतासम्पादक :( 102171- (02101 9 ्रोर सुख्र-प्रबर्तंक झोषघ है । इसका अधिकतर चर्ति-प्रदाद और पूयमेह सें देत हैं। [2---कहते हैं कि इसकी ताजी जड़ में ही क्र गुण वत्तसान होता है । सूखी जड़ उक्त गुण ि.छ फ211 श्वानतृण । दे० “एयोपाइरस' । 15, ग, | सतिवन । सप्तपण । छातिम । 2185: छूकरकाएग, एजीसरास-मेजस -[ले० 3 ०81- है. बेड । हलस हर ! | न ) एटिपाल-् ले० । पानी जमा 1 ज जम एहाघ.5 हा) 8.15 छिलहिंड । सेवटा ए एटिपुचल--[ ते० ] इन्दायन । इन्दूचार




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