सत्यार्थप्रकाश | Satyarthaprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋ रे 3 भूमिका ॥ हिताहित समम कर सत्याय का ग्रहण शौर मिथ्या का परित्याग कर के सदा आनन्द में रहें भनुप्य ऋ आसमा सत्यासत्य का जानने वाना टे तथापि प्रपने प्रयोजन की सि दधि हट दुराग्रह आर अनिदयादि दोप स सत्य को दो मर्ह पं मक जाता है पनन्त इस अन्थ में ऐसी बात नहीं रक्खी है, छोर न किसी का सन दुग्वाना वा किसी की हानि पर तात्पय्ये है । किन्तु जिस से मनुष्य जाति की उन्नति और उपकार दो सत्याध्सत्य को मनुष्य लाग जान वार सत्य का अहगा झीर असत्य का परि्याग करें क्योंकि स- व्योषदेशु के विना अन्य कोई थी मनुष्य जाति की उन्नति का कारगा नहीं है. ॥। ( इस अन्थ में जे। कहीं र मूल सूक „+ अथवा गोधन तथा छापने में भले चूक रह जाय उस करा जानने जनान पर्‌ जसा वह सत्य होगा वैसा ही कर दिया जा- यगा दर जा कोई परन्नपात से स्रन्यथा शका वां खण्डन मग्डन कर्मा उस्‌ पर भयान दिया जायया | हां जा वह्‌ मनुप्यमात्न का दिनी हा कर कृष्टं जनाब खम को सत्य २ समभन पर उम क्रा मन्‌ सयृहीन हागा } <सद्यपि आज कल बहुत से विद्वान, प्र्यक मतों में हैं थे फ्लवात होड़ सरवलन्त्र सिद्धान्त अत, जा वनिं म्र के असृकूल सब से सव्य हें जैउन का अटगा और जा एक दूसरे से मिरुद्ध बातें हैं उन का न्यास कर परस्पर प्रीति स वत्तं वन्विं तौ जगन्‌ का पृ दिन दवत क्योकि बिद्रानों के घिंगिप से अविद्ान म विग वर कर अनेकविधं द्व क बृद्धि स्म सुख का हानि दाती & व इस हानि ने ता कक स्वाथ! मनुम्या क शरवद रोब सर नु्यों को दुख सागर पे ढुया दिया है । इन में से जो कोई सावेजडिक दिल लघ में घर रवृत हाना ह उस स्वार्थी लोग विराध करने में तत्पर हाकिर झनेक प्रकार निव्ल कर- से हैं । परन्तु 'सम्यमव जयति नाएनसे सावन पर्था बितते दवयान:, श्रथन सवदा स 'त्य का विजय और असस्य का पंसजय और सत्यही से विद्वानों का मार्ग विस्तुत होता है इस रद निश्चय के आलम्बन से आलोग परापकार करन से उदसीन हो कर कभी सत्याथेप्रकाश करने से नहीं हरत | यह बड़ा टू निश्चय है कि यलद विषमिव परिगामिडमृूसापमष्द ” यह गीता को चथन हैं इस का अिप्राय यह है कि जा २ बिया ओर्‌ धर्ममराति के कमे हैं व प्रथम करने में विप के तुल्य और पश्चान अस्त के सदश हाति हैं एसी बातें को चित में घर के मैंच इस अंथ को रचा है । श्राता वा पाठकगण मी प्रथम प्रेम से देख के इस अंथ का सत्य रत्तात्पय जान कर यथेष्ट करें । इस में यह ्मिषाय रकखा ५ भाक = क




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