धर्ममय समाजरचना का प्रयोग | Dharm May Samaj Rachana Ka Prayog

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Dharm May Samaj Rachana Ka Prayog by मुनि नेमिचन्द्र - Muni Nemichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाराकीय श्रीश्मारमाचन्द जेन कालिज, अम्बाला शहर की स्थापना सन्‌ १६३८ ई० मे श्रज्ञानतिभिरतरणि, कलिकालकल्पतर्‌, भारत दिवा- कर, `पंजावकेसरी श्री श्री १००८ जैनाचार्यं स्व ० श्रीमद्‌ विज्ञयवल्लभ सूरीश्वर जी के करकमलों द्वारा हुई थी। उनका यर प्रयास अपने परम श्राराध्य गुरुदेव प्रातः स्मरणीय, न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्यं श्वी श्री १००८ स्व० श्रीमद्‌ विजयानन्द सूरीश्यर (प्रसिद्ध नाम श्री आत्मा- रामजी) की सरस््रती-मन्दिरो की स्थापनाधिपयक अन्तिम भावना को साकाररूप देने के लिए था । वे १६वीं शतान्दी के आादुर्शसाघु, दिग्गज विद्वान, उच्चकोटि 'के लेखक व कथि थे, जिन्होंने तत्कालीन सांस्कृतिक जासरणः (ए५1७१४] ए८0४१४५४0०९) सें योगदान दिया ! वे शिक्ता- चार द्रि जेनधम के मौलिक सिद्धान्त श्रर्दिसा व सत्य का प्रचार करना 'सीदते थे । अतः उनकी पुख्यस्मृति में स्थापित इस कालिज का निन्न उदे श्य निश्चत किया गया था--धार्मिक, नेतिक रौर व्याद्दारिक शिक्त का प्रबन्ध करना, अहिंसा ब स्य के सिद्धान्ों का प्रचार करना, मानवजाति की सेवा की भावना को जागरित करना, जेन-साहित्य के पठनपाठन को प्रोत्सादित करना, सहिष्णुता, पयेपकार श्ौर समन्वय की भावना का विकास करना । इन लक्ष्यों को दृप्टिसन्मुख रखते हुए कालिज लगभग तीस वर्षी से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली च राजस्थान कौ जनता की सेवा कर रदा दे । हरियाणा राज्य के सबसे पुराने दो कालिजों में इसका स्थान द्‌ श्मौर आज्ञ यह्‌ विकास करते-करते एक महान्‌ चत्त का रूप धारणं कर चुका दै; जिसकी छाया; परतो, पलों च फलों ने जनसाधारण का उपकार किया तथा उयशिच्ता के साधन ज़ुदाए ।'




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