भ्रमोच्छेदन | Bhramochchhedan

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Bhramochchhedan by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रमान्छद्म॥ १३ न पुरुषान्‌ मयटूतात सयद्तयान्‌ मवेदयक्तिमन परद्रदणः (श्रवः) श्रग्वेदः ) यट ( पामान) पामयदः ( छन्परमि) भयव्रवदृश् । जद्चिर ) चरवागों दिस्वितद प्ररदिता दि देदम | यद एवंटुन आर यहाविदापरय पूर्ण पुर केट,प्मान्‌) प्रयागू जा खय रूप पूर्य एव पार्य एपरात्पिमान गुरुप परमात्मा इपमसे चारों वद प्र पदिन हुए द इत्यादि थे यददों ददों हो दे प्रमाण थे चार बेदों को रवतप्रमाए से सिद्ध 'रया दि यद्यपि यद्दीं यघ शन्दु भ पूर्ण परमारमा को विशेषण दे तथापि जैसा मैने अपें यादवै प्रादय भी दै दूए साधी के लिय ( यतो ये पिष्णु: यह वचन लिखा दे सौर जो पादयाण में मूल दे बियद्ध अर्थ दोता हो में गणाका दपन सदी के झ्ग पभी न 'नयता जो इस प्रदार से पद, दाकय, प्रकरण और प्रत्य फी साछी अआफा दशा योग्यता नासरि चर तारपरयो्थ पक्षी राजाजी अर स्वामी विदयुद्धानन्दजी जानते या किसी पूणण बिन की सेवा भर के वावय आर प्रफरणु के दाददार्थ सम्पन्थों के जानने में तन मन धन लगा के शत्यन्त पुयपार्थ से पढ़ते हो यधावतू फर्पों न जान लेते # ॥ (सष्ठ षा कुछ पलट पलट किया तो विचित्र लीला दियाई देती दे श्राप पष्ठ ८१ प्र मं लिखते फात्यायन प्रदविनेकदःदि छि यन्तर शौर म्रादाण प्रन्यों फा नाम वेद दे पृष्ठ ५२ में डिखसे हैं प्रमाण ८ हैं भौर फिर पृष्ठ ५३ लिलतेद^्वौथा शब्दुप्रमाण चाप्त के घपदेश पां वां ऐ विद्या सत्यवादी विद्वानों के कद्दे वा लिखे उपदेश सा श्चाप के निकट कात्यायन घ्रपि आाप्त और सत्यवादी विद्वान नहीं थे ) 1 ॥ स्वा० इस का प्रत्युत्तर मेरी बनाई फग्वेद।दिभाप्यभू सिका के प्प्ठ ८० पाई २८ से लेके पृष्ठ ८८ अठासी तक में लिस रददा दे जो 'चादे सो देख लेवे भौर जो वह ( एड तेमाजुक्तत्वात्‌ ) इस वचन का यही चयमिप्राय दे कि ( मन्त्र ब्राद्म णुयवेंदु- नामयम्‌) यद्द वचन फार्यायन प्ररपि का नददीं दे किन्तु किसी घूतेराटू ने कास्यायन ऋषि के नामसे बनाकर प्रसिद्ध कर दिया दे जो कासयायन ऋषि का कहा दोता तो = = = = पढुत हू व पदा्था का यथादत्‌ू कभा नदी जान ए नाम से वचन रचकर प्रसिद्ध




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