संबोध सत्तरि | Sambodh Sattari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 सबोध सत्तारि । - ७ अय एस दिधिल परिणामवालोकों स्थिर रखनेके लिए चारिन्र धमका चिदोष प्रकारसे सर्वोत्कृपठ- पना वतलाते हे- को चक्रवद्धि रिः चं दासत्तणं समभिरप्तई । को ठ र्यणाईं सुं, परिगिन्द उवरुलंडाई ।\ १८ चन्रवर्तीकी ऋद्धि छोडकर गस होनेकी अमिरापा कौन करं सक्ता है * क्योंकि रत्तको छोड़कर पाषाणके टूकडेको सिवाय सुरखके (नो लामालामके विंचारसे शुन्य है) कोई ग्रहण नहीं करता ॥१८॥। अब प्राप्त किया हुआ जो दुःख हे वह नष्ट केसे हो सक्ता हे सो चास्त्रकार द्टान्तपूवक मन्यात्मा- आंको समझाते हैं- नेरइकाणांबि दुख्खं, जिज्झइ कालेण कि पुणनराणं । दा न चिरं तद होई, दख्ख मिणं मा समुचियद्ु ॥१९॥ नरके जीर्वोकों जो कट है वह भी समयान्तर पर नाश होता है! तो मनुष्यके छिए तो कहना ही क्या ! ! इसलिए मुझको भी यह दुःख चिरकाल तक नहीं रहेगा। अतः हृदयके अन्द्र तू खेद मत कर ॥१९,॥ परम पवित्र चारिन्नकों ग्रहण करके त्याग देना बहुत दी बुरा है इस बातको दिखानेके लिए चास्त्रकार कहते हैं । वरं अमिपमि पक्सो, षरं विुद्धेणकम्मणा मरणं । मा गहियन्वय भगो, मा जी खलिअसीलस्स ॥२०॥




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