प्रज्ञापानसूत्र भाग १ | Pragyapanasutra Volume- I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न नेताओं ने भी झपके प्रवचनों करा लाभ लिया था । सचमुच श्रापकी वाणो में निराला मावुय था, सरलता इतनी कि साधारण पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी उसे अच्छी तरह समभ लेता था । आपके मंगलमय उपदेदा श्राज भी जनजीवन को नवजागरण का सन्देश दे रहे हैं । श्रात्म-शताद्दी वर्षं वि. सं. २०३९ श्रापका जन्म-गताव्दी वर्प है | ग्रह पावन वर्प है । ऐतिहासिक है। यह वर्ष विशेषरूप से पुज्य गुरुदेव के चरणों में श्रद्धासुमन समर्पित करने का है । गुरुदेव की जीवन की महानृतम उपलब्धि थी--जैन आगम साहित्य का विद्वानों तथा सर्वसाधारण के निए उपयोगी संस्करण । यही उनकी हादिक भावना थी कि जंनग्रागमनानका यथार्थं प्रसार हो, जन-जन के हथो में ्रागमज्ञान की सुल्यवान्‌ मणियां पहुँचे । गुरुदेव श्री की इसी भावना को साकार रूप देने हेतु मैंने प्रनापनासुत्र का श्रनुवाद-विवेचन करने का दायित्व लिया है । अपने श्वद्धेय गुरुदेव के प्रति यही मेरी श्रद्राञ्जलि दै। - ज्ञान मुनि [१७]




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