प्रज्ञापानसूत्र भाग १ | Pragyapanasutra Volume- I
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न नेताओं ने भी झपके प्रवचनों करा लाभ लिया था । सचमुच श्रापकी वाणो में निराला मावुय
था, सरलता इतनी कि साधारण पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी उसे अच्छी तरह समभ लेता था । आपके
मंगलमय उपदेदा श्राज भी जनजीवन को नवजागरण का सन्देश दे रहे हैं ।
श्रात्म-शताद्दी वर्षं
वि. सं. २०३९ श्रापका जन्म-गताव्दी वर्प है | ग्रह पावन वर्प है
। ऐतिहासिक है। यह
वर्ष विशेषरूप से पुज्य गुरुदेव के चरणों में श्रद्धासुमन समर्पित करने का है ।
गुरुदेव की जीवन की महानृतम उपलब्धि थी--जैन आगम साहित्य का विद्वानों तथा
सर्वसाधारण के निए उपयोगी संस्करण । यही उनकी हादिक भावना थी कि जंनग्रागमनानका
यथार्थं प्रसार हो, जन-जन के हथो में ्रागमज्ञान की सुल्यवान् मणियां पहुँचे । गुरुदेव श्री की इसी
भावना को साकार रूप देने हेतु मैंने प्रनापनासुत्र का श्रनुवाद-विवेचन करने का दायित्व लिया है ।
अपने श्वद्धेय गुरुदेव के प्रति यही मेरी श्रद्राञ्जलि दै।
- ज्ञान मुनि
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