दृष्टांत सागर | Drishtant Sagar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Drishtant Sagar by रतनसिंह वर्मा - Ratanasingh Varma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रतनसिंह वर्मा - Ratanasingh Varma

Add Infomation AboutRatanasingh Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
# इष्टान्त सागर 9 १४३) सीन पुत्र थे जब वदद मर गया तो चद श्यपने पुत्रों से कदद गयाकि सारे घन धान्य को तीनों भाई बराबर वरावर वाँट लेना परन्तु घोड़ों का दिस्खा इस तरदु करना कि कुल का श्राधा बड़े को कुल का तीसरा हिस्सा मंकते को श्योर नता दिस्खा छोटे वेदे को मिले) उसके मरने के पश्चात तोनों भाइयों ने सारा धन चराचर किया परन्तु १७ घड़े बाकी रहें । रच वाद्‌ करने में मगड़ा दने लगा शन्त मे काजी क पस गये दुसरे दिन काजी सादय ~ भ्ये आर कदा कि “यदि तुमको घ्पने हिस्सा का कुछ अधिक मिल जाये तो प्रसन्न हो प्रदया करोगे । तोनों ने इथरोकार किया । फिर काजी साइव ने उन सत्र घोड़ों में एक श्रपना घोड़ा मिलाकर श्रठारद कर दिये श्रौर कुल का श्राधा ध्रथात्‌ ६ घाडे डे लड़के को दिये शोर - कदा कि “तुम्दारे हिहसे स उयादा है फिर कुल का सीलरा भाग यानी € घोड़े मंसजे बेटे को दिये घोर कुल का चवां भाग रथात्‌ २ घोडे दंटिबरेटे को मिल गये । इस प्रकार सेब्रद धाडे बट दिये श्र॑र श्रञरहमा श्प; थोड़ा झषते लिये बच रदा यद देखकर सम्पूणं नगर निवासी फाजी के न्याय की बडाई करने लगे 1 . £ ही (५ १०- चन्दगुप् कां इान्दमाना ॥ किसी कवि का लेख है कि पक .चार रूम के बादशाह छे रजा महानन्द फे पाख पके वनारी शेर कोद की जाली के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now