ओंकार भजनावली | Aunkar Bhajanavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
902 KB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४ )
भी चूतो पाँच ही में लुभावरे ॥ मन वार बार इत० ॥ ९ ॥
' पशुओं की खाल से तो बजते हैँ साज बाज, |
मालुष की खाल कल्यु काम सदी चवेरे ।बार वार इत०।३))
. सृत के चोत्त बोल ज्ञान को हृदय में तोल/
देख फिर ऐसा श्रमोल छोंकार पावर ॥ बार बार० 1 ४ ॥
| छन्द सवेया
काम कियो कषु नेक नहीं, अमिसान में खूब बढ़े हो झगारी !
छापने धर्म पर ध्यान धरे नहीं, लाज गई इस दीस की सारी 1!
लाल लुट तेरे माल लर सव लाज लुटे दुख सहते दो भारी।
हाय जस श्रव शंख उधारो, वेद् प्रचार की आग चारी ॥
सचे भक्त की प्रतिज्ञा
सम्पत्ति जाय सो.मोह मिटे झरु गये घटे अपने मन को । सुत भात
के जात कटे जुग जासन छाउन फेर पढ़े धन को । यदि प्रि
चले कछु घ्राण नदीं इन एक विनाश खरों तिनको । धर्म गयो तो
सुने सममे पर घधिक्त हजार वड़प्पन को ॥ सुख साज हटे घर बार
लटे धनन सम्पत्ति सवै हरे तो दरो । सिर वद् परे गल फाँस घरे
भत से पाड प्रे तो परो॥ शल के शंक चदय कदय के चाम में
नोन भरे तो भरो, भै निज -धर्म न त्याग करं चदे कण्ठ इटारं.
धरे तो धरो ॥
संकट. वार पड़े धन धाम हरे भमता नहीं जोर, गात सहूं
तप बात सहूँ उत्पात सहूं दस हू दिश दोरं ॥ अमे विदे कटु
कंटक से सहद संकट व्यास नहीं गुख' मोड़ । गेह तजू अल देह
उच पर दश भूं कण एक न छोड.) या तनं पै तलवार धरे सर
पार करे तो कभी च नट मेँ । कोटिक रर क्लेश भिले दुःख देहे
दले तो रती न दद म, खल काड़ी ङडार प्रद्दार करे भल अगूंठ
चार के.टूक कहूँ में ॥ किन्तु यद्दी एक आस करूँ हरि भक्ति करू
भनु नाम रद मैं ॥
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