आर्यमथ लीला | Aaryamatleela
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'ांयेमतलीला'॥ (११)
हक मलाववलवलविलविवलिनाकललववलवविविवितिगती।
जेसी लुद्धि रखती था । दिन्दुस्तानियों “| बिद्या और कारीगरी: की बातों में
कोः ऐसो शिक्षा--दी' कि सनष्य छेपने | ' शर्पना बिधार लयाना नहीं चाहते.
विचार से पदार्थों: के यशों का प्रयोग | हैं, जब कि सब लोग निरुद्मी शौर
करके नेवी नें कांये -उत्पादन नहीं कर | 'शालसी हो रहे हैं और एक कार्पेडी
सकता! है ।'ऐसी' शिक्षा के प्रचार का | सीने की झुद्दे तक के वास्तें 'विद्शिं-
यह प्रभाव खुझा कि. चिद्या की : जो. | ,योंके 'छाश्रित हो रहे हैं ऐसे नाजंफ
स्नति 'हिन्दुस्तान में हो रही थी ;संमय में स्त्रामी जी को यह शिक्षा कि | :
बह बन्द हो गई शौर जो दिज्ञानकी' | 'मनुष्य झपने विंचार से कंख भी चि- '
बातें पैंदा करली थीं श्राद्चिस्ता २ उनः| 'ताग मास नहीं कर सकता हैं हविन्दु
को भी भूल गये क्योंकि बिचार शक्ति | ,स्तानियों के; वास्ते जंहर की काम.
को: कांस में 'लाये-खिट्न . विज्ञान की | देती है । यंदि स्त्रासी जी को शर्थो के
बलों का म्रचार- रहना श्ासम्भव ही | भनुसार वदों में . पदा थे लिद्या: और
हो जाता है.। यह भी सालम होता | :.कारीयरो शादिककी धार स्मिकं शिक्षा
है. कि. भ्रभाग्य. के ज्द्यसे दिन्दुस्तान. | भी होती .तौ भी ऐसी शिक्ता कु
में नशेक्षी 'चीजके पी ने :का सी, प्रचार .| विशेष हानि न करती 'पंरन्त बदों में,
उस ससय में ,बहुत हो गया था जिस- |: तो कुछ सी नहीं है सिवाय प्रंशंसा' |:
: को सोस: कहते, थे । इस से रहा . सहा, |, धर स्तुति के गीतों के शौर वह भी
आन खिलकल:दोी नष्ट होगया: और | इस प्रकार कि एक २ विषय के एक
| इस, देश-के-सनष्य झत्यंत.. सूखें शोर ही मजसून के सैकड़ों गीत जिनको
्रालसी हो. गये - - |. पढ़ता र॑ ादूमी उेतिाजिंबे छौर
! यदि वेदों के झुयें को स्वामी जी ने | दांत एक भी प्राप्त न हों । खेर 'यंदं थी
| किंये हैं वदद 'ठीक हैं तो इन श्र्थोसे' |! इस 'ांगासी दिखावेंगे. कि वेदों में
यह ही ज्ञात होता है कि' इस सुखेंतां |! क्या लिखा है ? पर॑न्ते इस स्यानपर |
कें.संमय में ही वेदों के गीत बनाये | तो हम इसना ही कहना चाहते हैँ !
गयें क्योंकि” स्वामी जो के 'अंयों के | कि यांदि कोई बालक. जो 'सर्नर्थों से
शर्नसार वेदों 'में सिंबंध्य 'य्रामीण सर | ' झलग रृंक्खा.जावे केवल एक चंदृंपाठी
“नदषंयों के गीत के 'पौर कद नहीं है । | गरूं उसके पास रहै और उसको स्वाँसी
। खेर वेदों में कद मी हो हमको तो |: जीके अथंके छनसार संब वेद पढ़ा देखे
] जोकि दस बात का है कि स्वांसी जी' | तो चह मालक इतना भी खिज्ञोन यो
इस बतेमान संमंयं में जब कि हिंन्दूं-' | न॑ कर सकेगा किः छोटी से छोटी कीड़े
स्तांनंमें-प्रचिद्यां न्धकार फेला हुआ: | वस्तु जो गांवके, गंवारें , बना लैंतें ' हैं
| है जंजं कि दिन्दुस्तानी लोग: पद थे | चनालेवे। यांवेके' बाढ़ी चखो वेनो लेते
ली समन किमलविवालिस व््ह्न््यु
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