प्रतिपाद्य विषय की झांकी | Pratipadya Vishay Ki Jhanki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ गुप्रजी के एक दृखरे काव्य “जयद्रथवधः खी ओर दशि 'पात करें तो उसमें मुख्यतः तीन स्थल ऐसे हैं जो करुण रस के आलम्बन बनाए जा सकते हैँ :- १. अभिमन्यु की वीरगति २. उत्तरा का विाप ३. जयद्रथ काकवध इनमें प्रथमदोका कारण्य तो जीवन का उत्कपे-विधायक है, किन्तु दतीय का नहीं । अतः हमारे कवि ने प्रथम दो प्रसंगो का तो सदानुभूति ओर समवेदनापूणे चित्रण किया हे; किन्तु तीसरे, अर्थात्‌ जयद्रथ वध के प्रसंग को, न केवल भगवान की इच्छा कह कर टाछ ही दिया; श्रस्युत उसे धमराज भीर अजुन ऊ सुख-संमिलनः का प्रष्टाधार भी वनाया । यद है गुप्तजी का आदशंवाद । 'गिरीश' ने ठीक ही छिखा है कि इन्दं “मानवः




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