भारतीय धर्मं साधना एवं चेतना के इतिहास | Bhartiya Dharma Sadhna Evam Chetna Ke Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ॐ १ फ्ीर दरसन साध का साहिव आव याद । सेये मे सोई घडी वाको फे दिन वाद ॥ साथ मिले साहिद मिले, अतर रही न रेख) सनसा चाचा कर्मना साधू साहिद एक ॥ अब यह प्रश्त उठता है फि सतो के समण पया है * उनके उत्तरमे यही कहा जा सबाता है कि सत्तों को यथार्थ पहिचान बाह्य-लक्षणो से नहीं हो सकती है । सतो के नक्षण श्रीमदूनागवत तथा राम चरित-सानस में सविस्तार उल्लिखित हुय है। श्रीमद भागवत्त में भगवान भक्त उद्धव से फहते है *उद्वव मेरा नक पा की मर्नि होता है, बह फिसी भी प्राणी से वैर नहीं करता, वह नतर प्रतार ने युसवु सो को प्रसन्नतापूर्वव सहन करता हैँ, सत्य को जीवन का नार्‌ गमयता र, उने मनम कभी किमी प्रकारे की पाप-वासना नहीं उठती, वह सयत्र समदर्णी आर सघफा अकारण उपकार करने वाला होता है। उसकी वृद्धि कामनाओं से चलुणित नहीं होती । वह उन्दिय विजयी फोमल स्वभाव और पवित्र होता है उसके पास अषपनी कोई भी वस्तु नहीं होती है, किसी भी वस्तु के लिये वह कभी नी नष्टया नही करना है, परिमित भोजन करतार, खदा णात रहता ह 1 उसकी चुद्धि रिवर रनौ र, वह्‌ केवल मेरे ही आश्रय रहता है, निरन्तर मननशील रहता है, वह कभी प्रमाद नहीं करता है, गम्भीर स्वभाव और धैर्यवान होता है । भूव, प्यास, शोक, मोह और जन्म-मृत्यु उन छ पर विजय प्राप्त कर चुका है । वह स्वय कभी हिसी ने फिसी प्रवार का मान नहीं चाहता है और दूसरों को सम्मान देता रहना है । भगवत्सम्वन्धी बातें समसने भे वडा निपुण होता है उसके हृदय में करुणा भरी रहती है और भगवत्तत्व का उसे यथार्थ जान होता ह 1२ ? मत-व्रानी-ग्रट-भाग प्रथम-पृष्ठ २८ । २ गपानुगग्रनद्रोहम्तितिन सर्वदेहिनाम्‌ 1 मन्यसारोऽनवद्यात्मा मप्र मर्वोपिकारक ॥ कामरहतधीर्दान्तो मृद गुचिरक्रिचन । अनीहो मितभक्‌ णान्त स्विरो मच्टरणेमृनि ॥ अप्रमत्ता गम्भीरात्मा धृत्तिमाल्जितपड गुण । अमानी मानद कत्पौ मैत्र कामुणिक कवि ॥ श्रीमद्‌ भागवत्‌ ११।१६।२९-३१।




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