निबन्ध | Nibandh

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Nibandh by कर्मवीर मिठास - Karmvir Mithas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) किये जायें वे सब शुद्ध हिन्दी के;ही कीं कहीं उदू . या अँगरेजी, के ऐसे शब्द रक़्खे जा सकते हैं जो अधिक प्रचार, में झा गये हूँ।., '. शब्दों के पश्चात्‌ निवन्ध में वाक्य रचेना :का स्थान है । वाक्य-रचना ऐसी दो जिससे. अधिक से अधिक प्रभाव उत्पन्न हो सके । घास्य-रचना में ध्यान देने योग्य बात शब्दों का सघटन) तथाःमापा की प्रांजलता है । जब किसी वाच्य सें सघन का घभाव होता है ता मुख्य भाव प्राय: लुप्त सा हो जाता द आर पढ़ने वाला चाक्य की जटिल्नता में पड़कर निर्र्साहित हो वेठता दै । वाक्य सीधे सादे और न्याकरणानुकूल दो जिनसे लेखक,का भाव पूर्ण रूप से व्यक्त हो जाय शोर पाठक सरलता से ,भाव को पकड़ता चले । वाक्यों की लम्बाई या विस्तार के सम्बन्ध में कोई सीमा निर्धौरित नहीं की जा सकती । यह्ठ तो लेख़क के अभ्यास, कौशल और सददजबुद्धि पार 1नसंरन्द्॥। विद्याथियां को अपने सिबन्धों में यथा संसव छोटे वाक्यों का ही, प्रयोग करना चाहिदे । ,वड़े वाक्यों में, वाक्यांशों के-संवंध का निचोद्द करना फक़ठिन हो जाता है । ` शेली.मे अलंकृत वाक्य-रचना के प्रयोग से भाषा में, सोन्दये आ' जाता है पर उसकी अधिकता उसे नष्ट भी कर देती 'ह 1. श्रूलंकारो के प्रयोग' में वड़ी सावधानी ' की आवश्यकता होती है अतः जो विंद्यार्थी उन्हें ठीक सभमते हों वे ही प्रयोग कर सकते हैं । 4“ + ज , लोकोक्तियों और मुद्दावरों के प्रयोग से भी निबन्ध की राचकता बढ़ जाती है अर पदने- वज्ञे को अधिक आनंद आता है। परन्तु यह तभी हो सकता है जव कि. उनका प्रयोग ठीक ठीक किया जाय । कचवियों- की - कुछ कर्ताओं




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