स्कन्दगुप्त | Skandgupt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्कद गुप्त ११
अ
सले दी कथा यें काव्यात्मक पद्धति के कार्णं अन्य असंवद्ध
वातें सी आरा गई दो । झुमारगुप्र के शर्दद्रादित्य; रकंदशुप के
का
-0
विक्रसादिव्य हैते योर स्कंदशप्र के स्लेच्छ-संदार करने तथा
उज्जैन में उपस्थित होने के विपय सें विवाद नहीं हों सकता |
ब्न्य खेखकों ने थी इस सत का ससथसन किया है |
१... के.
पुष्यसिन्रों व पराजय के उपरांत सी स्कदशुप्त को साँस लेने
का अवसर नहीं सिला । उसके सिंहासन पर वंसते ही ववर
टूर्णों के अत्याचार आर आक्रमण आरंभ हुए । सारा पश्चिसोत्तर
प्रांत त्रस्त हो उठा । इस पर पुनः वीर स्कंदराप्त ने अपने अलं
किक पराक्रम का उत्कट प्रदशेन करिया । संभक्तः भित के स्तंभ-
लेख को चोदहदवी पाक्त से आगे इसी स्थिति का चसन है; याकि
मालिनी के उपरांत जहाँ से शादूलविक्रीड़ित छंद चआांरंस होता है
चहाँ से ऐसा ही सालूम पड़ता है; कि यह छुछ प्रथक् विपय ही
आरंभ हो रहा है । मालिनी छंद तक पुष्यमित्रों के युद्ध झार
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तथा विषमशीलं च महेन्द्रादित्यमूपतिः । -- वदी, श्लोक ५९१ ।
स राजा विक्रमादित्यः प्राप चोजयिनीं पुरीम् । -- वदी, तृतीय
तरंग, श्लोक ७ ।
2 ८2 ) 4 @०४९[९दणठ ० ४26 [वादः &०15 72 {116 371४561 तप्ञछ्धा)
( 1914 } श 41107, 10६0८1०४, 7. 99.
(ॐ) रुस-साम्राज्य का इतिदास--श्रीवासुदेव उपाध्याय, प्रथम खंड,
पु० २१६ |
( ) नाव्य नाः 9 4 दात स्वा ( 1932 ) छः
९८110076 1२2 (ाोदपवाप्णप, 7. 389.
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