स्कन्दगुप्त | Skandgupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्कद गुप्त ११ अ सले दी कथा यें काव्यात्मक पद्धति के कार्णं अन्य असंवद्ध वातें सी आरा गई दो । झुमारगुप्र के शर्दद्रादित्य; रकंदशुप के का -0 विक्रसादिव्य हैते योर स्कंदशप्र के स्लेच्छ-संदार करने तथा उज्जैन में उपस्थित होने के विपय सें विवाद नहीं हों सकता | ब्न्य खेखकों ने थी इस सत का ससथसन किया है | १... के. पुष्यसिन्रों व पराजय के उपरांत सी स्कदशुप्त को साँस लेने का अवसर नहीं सिला । उसके सिंहासन पर वंसते ही ववर टूर्णों के अत्याचार आर आक्रमण आरंभ हुए । सारा पश्चिसोत्तर प्रांत त्रस्त हो उठा । इस पर पुनः वीर स्कंदराप्त ने अपने अलं किक पराक्रम का उत्कट प्रदशेन करिया । संभक्तः भित के स्तंभ- लेख को चोदहदवी पाक्त से आगे इसी स्थिति का चसन है; याकि मालिनी के उपरांत जहाँ से शादूलविक्रीड़ित छंद चआांरंस होता है चहाँ से ऐसा ही सालूम पड़ता है; कि यह छुछ प्रथक्‌ विपय ही आरंभ हो रहा है । मालिनी छंद तक पुष्यमित्रों के युद्ध झार [1 छक च-9 = [1 तथा विषमशीलं च महेन्द्रादित्यमूपतिः । -- वदी, श्लोक ५९१ । स राजा विक्रमादित्यः प्राप चोजयिनीं पुरीम्‌ । -- वदी, तृतीय तरंग, श्लोक ७ । 2 ८2 ) 4 @०४९[९दणठ ० ४26 [वादः &०15 72 {116 371४561 तप्ञछ्धा) ( 1914 } श 41107, 10६0८1०४, 7. 99. (ॐ) रुस-साम्राज्य का इतिदास--श्रीवासुदेव उपाध्याय, प्रथम खंड, पु० २१६ | ( ) नाव्य नाः 9 4 दात स्वा ( 1932 ) छः ९८110076 1२2 (ाोदपवाप्णप, 7. 389.




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