योगेश्वर गुरु गंगेश्वर भाग ३ | Yeigoshar Guru Gangeshwar Vol 3

Yeigoshar Guru Gangeshwar Vol 3 by रतनबहन फौजदार - Ratan Bahan Faujdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ योगेश्वर गुरु गैगेश्वर प्रदक्षिणा हो, भोजन करना हृवनक्रिया हो और लेटना प्रणाम हो । इस प्रकार आत्मार्पण बुद्धि से किया गया मेरा संपूण सुखभोग आपकी पूजा हो बन जाय । प्रिय निजात्मन्‌ वाचक ! यह कहना तां सरल हे, परन्तु इसका आचरण असंभव तो नहीं किन्तु कठिन अवश्य है । उसे सरल बनाने का सरलतम मार्ग है प्रभु की कथा का श्रवण, प्रभु के-सद्गुरु के चरित्र का मनन एवं उनकी सर्वग्राही -सर्वापरि महत्ता का निदिध्यासन । इससे मन शिवसंकल्प होगा जैसे कृष्ण-चरित्र के बारंबार दशेन, श्रवण एवं मनन से गोपियाँ तन्मय हो गई थीं। अतः यह मेरा स्वस्प प्रयास स्वान्तः सुखाय है, उसमें आप भी पढ़कर सहभागी बनें और मेरी तरह आपका भी मन शिवसंकटय बने । तो अब प्रमु के-गुरु के चरित्र का तृतीय भाग प्रारभ होता है-- सन्‌ १ ९७.४-७५. मे पचानवे वषे की परिपक्व अवस्था मं आपने वेद- प्रचार-प्रसारा्थ दक्षि-पूर्व एशिया, अफ्रिका, लन्दन, अमेरिका, केनेडा, इण्डोनेशिया एवं वेस्ट इण्डिझ् की यात्रा की थी । इन सभी देशों में आपने विभिन्न विश्वविद्याक्नयों, पुस्तकालयों, मन्दिरों एवं भक्तों के आवासों में भगवान वेद्‌ के सनातन व्रथ-रत्न की स्थापना की, अनेक उच्च पदाधिकारियों, विद्वानों तथा. संस्क्ृत- प्रेमियों से बार्ताखप करते हए वेद्‌-ग्रन्थ की महत्ता, गौरव एवं उपयोगिता पर आपने प्रचुर प्रकाश डाला । चार महीनों के सतत प्रवास के पश्चात आप ३१ जुलाई १९७५ में पुनः भारत पघारे । वेद और आप में इतना अभेद दै कि यह तो जो देखे वही समञ्च सकता है, इस विषय में कुछ कह नहीं सकते । फलस्वरूप भारी भ्रमण के बाद भी आपका स्वास्थ्य विक्ृत नहीं हुआ, प्रत्युत और भी शक्तियुक्त, एवं प्रफुछित हुआ जिते देखकर सन विस्मित ओर प्रसन्न हो गये । इतनी भूमिका के साथ सन्‌ १९७६ से ८० तक का आपका रोष चरित्र द्प॑म भक्त-प्रेमीगण के समक्ष गुङरूप दहना प्रस्तुत करने की अनुज्ञा चाहती ह । स्वागत समारोह : ३ अगस्त आप भारत से बाहर थे, अतः आपके भारत पधारने पर जनता आपके दर्शन के लिए. उत्सुक थी | भारत लौटने पर दो दिन आपके आराम के छोडकर, स्थानिक भक्तों ने आपके स्वागत के ढिए, ३ अगस्त को चचे गेट के के.सी, कालेज में एक समारम्भ नियोजित किया । कालेज के श्रो होतचंद अडवानी अतिथि-विशेष के ल्प म विराजित थे, तो पूज्यपाद स्वामी श्री अखण्डानन्द सरस्वतीजी अध्यक्ष के पद पर आसीन थे । पूरा हॉल ददनार्थियों से भरा था । आपके मच पर पधारने पर लोगों ने आपका हार्दिक सत्कार किया, आपके प्रति अपनी अटूट श्रद्धा एवं प्रसन्नता व्यक्त की । क्रमानुसार कार्यक्रम चला । मैंने




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