अद्वैतादर्श | Advaitadarsh

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Advaitadarsh by भानुशंकर रणछोर जी शुक्ल - Bhanushankar Ranchhor ji Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की $ हो, एसा घारनम आता दहै. तथा “यह्‌ क्या ? हमं कन केसे ओर क्यो है ? तथा जिस* अगस्यकों हम नहीं जानते-प्रतिबंधक अभाव सहित उसके जानने (-पाने- ज्ञान होने-समझने ) तथा सवमान्य सद्धमंद्वारा सदाचारी २ द्र्य शरीर ओर जगत्‌. > जड, चेतन वा. ' ३ जन्य अजन्य वा. ४ यह सृष्टि ओर हम किस प्रयोनन वास्ते हं. हमको ज्ञातव्य, कत्तव्य, प्रा्तव्य क्या हे, ९ सवं-माव वा अभावादे का विधायक कोहं मेतति'ते शेष होने योग्य, यहभी लिसका प्रका - स्य-अगम्प. | इस प्रकारके गुद्याश्यतवारे प्ररन-सेका-जिन्ञासाके उद्ेशका रहस्य यड हे कि, ““ दृष्टश्रुतर्कीही इच्छा होती हे-( जिज्ञासाका वि- प्रय होता हे ) ” यइ नियम हे; इष्ट प्राप्तव्य वस्तु, नहातक प्रात न हो-८ सोमश्ता--वह्टीकी इच्छावाका जहांतक सोमरस नहीं पीव) वहांतक, इच्छावानका विंशप नहीं जाता -उसे संतोष नहीं होता, यह स्पष्ट हे. अब यदि कोई-एक प्रंथ वा. उपदेशकका चिश्वासु- इष्टके नाना क्षण मतमेदमे नावाकिफ-विश्वासु--अज्ञ वा किसी धर्तकेंद्दारा, उस-( इछ॑को निर्णित लक्षणयक्त न जानने-नअनुभव करमेवाङे-भिरोको न जानेवाले ) जिज्ञासकों इप्ट ( सोमलता वा गड > के बदरे अन्य ( गिछो बा निंबफक बगेरे ) मिके-( देनेवा का नानके कहे कि यहीं सोमक्ता है ओर जिज्ञास, यहीं. सोमलता है, एसा नानके ल्पे ) तोमी, जिज्ञास उसीको स्व इष्ट (सोमलता) मानके संतछ-शांत ह्ाजायगा. क्योकि उसने इष्टको पृवेभं नदीं नाना-नहीं अनुभवा हे. पनः अन्यसे परीक्षा करानेपर कवा अन्य कारणसे, अन्य कड्‌ दुसरा, उसके पाये हये इष्ट-मतन्यम अ- न्य जगत वा. परुषमत-लूक्षण-भेद बताके-दोष देखाके स्वनिश्व य वा इंच्छानसार इष्ट ( सोमकता-गकी-निंबफल ) ब्रद्दके अन्य




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