अवधी लोकगीतों के अनोखे स्वर | Avadhi Lokageeto Ke Anokhe Swar

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Avadhi Lokageeto Ke Anokhe Swar by डॉ० महेश - Dr. Mahesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ (र) पहले समय मेँ बाग लगाना तथा सगरा खुदवाना पुण्य का कार्य समझा जाता थां । ३. देवी गीत सन्दभ--देवी का मन्दिर दूर है, एक स्तीं कह रही है कि वह किस बहाने से उनके दर्शन करने जाय 1 मे कउने बहाने आवड तौ देबी तोरे दरसन का ॥ टेक ॥ हये मं लिहे मइया डाल डेलइया, . मलिनिया बहाने आवौ तौ देवी तोरे दरसन का।१।। हाये मं लिहे लेड्ड्‌ का दोना हैलवइया बहाने आवडं तौ देवी तोरे दरसन का ।२\ हाथे मं लिहे मइया सोने का गेडवा, ' महरिया बहाने आवडं तौ देबी तोरे दरसन का ।1३॥ हाथे मं लिह मइया लडंगन कं बिरिया, तमोलिन बहाने आवडं तौ देबी तोरे दरसन का ।४॥ हाये मं लिहे मइया लाली चँदरिया, ¦ बजजवा बहाने आवडं तौ देवी तोरे दरसन का ॥५। --चिलौली (रायबरेली) हैं देवी ! मैं आपके दर्शन के लिए किस बहाने आाऊँ (वैसे तो मैं घर से बाहर कहीं नहीं जाती-आती) । मैं सोचती हूं कि हाथ में डाल- डलिया लेकर मालिन के (यहाँ जाने के) बहाने से आपके दर्शन के लिए आऊ ॥ १1 ` हाथ में लडड का दोना लेकर हलवाई के बहाने से आपके दर्शन के लिए आउ ॥२।। ; हाथ में सोने का गेड्वा लेकर महरी के बहाने आपके दर्शन के लिए आऊें ॥ र॥।




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