कबीर परम्परा (गुजरात के सन्दर्भ में ) | Kabir Parmpara Gujrat Ke Sandarbh Main

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Kabir Parmpara Gujrat Ke Sandarbh Main by कांतिकुमार भट्ट - Kantikumar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुजरात में कबीर की शिष्य-परंपरा | ५ आतिथ्य करे के {लिये कुद्ध भी नहीं था । सुमन अपने पुत्र शिव को लेकर चोरी करने गया । शिव के पकडे जाने पर सुमन ने शिव का मस्तिष्क काट लिया, जिससे कि वह पहचाना न जा सके । कहते हैं; अतिथि संतों ने शिव को पुनर्जीवित किया था । इस कया का एक दूपरा भो रूप है, जिसमें शिव को फांसी हो गई थी । संप्रदाय के ग्रंथों में बताया है, कि ये संत कबीर तथा कमाल थे । कहते हैं, कमाल को अपनी साघुता का अभिमान हो गया था । उनको सच्चे सन्त का दर्शन कराने कवीर साहब वहाँ ले गये थे । गरीवदास ने शिव द्वारा गुरु को शीश चढ़ाने का उल्लेख किया है । १ कवीरपंथी साहित्य में सुमन को दिल्ली के पास हंसपुर का निवासी बताया है, किन्तु ““मक््ति रसामृत' मे इसी कथा को भिन्न नाम से दिया है । पिता विष्वं भर करण जाति का विक है, पत्नी का नाम रेवती तथा पुत्र का नाम रघुनाथ है । पुनर्जीवित होने पर उसका नाम सुमन रखा जाता है । संतों के नाम कोई उल्लेख नहीं है ।* सुमन ने कुछ सन्त-वाणी लिखी होगी, ऐसा लगता है । उनकी वाणी के किसी हस्तलिखित ग्रंथ का एक पृष्ठ मिला है, जिसमें सुमन के नाम से लिखी १२ साखियाँ है 13 इन साखियों मे अपने घर अतिथि हरिजन के माने का उल्लेख है, कबीर साहब का नाम नहीं है । “हरिजन अये पोहुणे, क ( ) पर उपगार कियो । सिस काटी घर में रखो; वाको धड़ ले सुली दियो ॥” इन साखियों में सूली पर से जीवित करने का उल्लेख है । आठ पहर लटकत रहै, सिस बहोणो तन । जति सत्ति के पारखी, जीवन कियो सुसन ।\ पंथप्रचतंक शिष्य कबीर साहब के अनन्तर कबीरमत से प्रभावित करई निगुए-पंथ अस्तित्व में माये थे । गुजरात में दादूपंथ, राधास्वामी संप्रदाय, सत्केवल संप्रदाय तथा प्रणामी संप्रदाय जैसे पंथ कबीर के पर्याप्त पीछे प्रवर्तित हुये थे, इन पंथों के प्रवर्तकों के नाम कबीर के शिष्यों में लिये जाते हैं । यह सही है, कि ये पंथप्रवर्तक निर्गण मार्गी हैं, कवीर विचारधारा से या कबीर-पंथ से प्रभावित हैं । अलग पंथ स्थापना के कारण पहले उनका विरोध किया जाता है, किन्तु जब पंथ को स्थापना हो जाती है, तथा उनके गमनुयायियों का एक मंडल बन जाता है, तब किसी भी रूप में उनको कबीर का शिष्य - १. “गरीब सद्गुरु को क्या दीजिये; देने को कुं नाय । शिव ने सिर सोप्यो, सेवे शिश चदाय 11 | २. “श्री मक्तचरित्र' (अनुवाद) स० सा० व० का०, पर०.६९ । ३. यह्‌ पृष्ठ लेखक के पासन है !




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