देवेन्द्र मिलाप | Dewendra Milap

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Dewendra Milap  by श्रेदालाल - Shredalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) की ८ #| ~ ~ ^~ ट. नि (1----> - यो + 4 स्का अथ धम कामादिक सुख स दशौ दिया भर सकते हैं । लेकिन विपल्य परमक समता कभी नहीं कर सक्त ट ॥ प्रेम विवश हो प्रेम दाकि से विधिने खेल पसारा है । टिके हुए घह्मांड अनेकों केवल प्रम सहारा है ॥ 2३७ चर असू अचर प्रस के बल से जगमें जीवित रहते हैं । ईश्वर प्रम परम ही ईंदवर एसा पंडित कहते हैं ॥ पाकर उसी प्रम मंदिर से अनायास हीं प्रस प्रसाद । परम मझ होकर परमी जी क्या न भूलते तन की याद ॥ ३८ भः र चः कालिज़ में भी उसी प्रेम का खुख दायक रख घाल दिया । सहज स्वभाव स्वमान भावस चरम खजाना खाटः दिया ॥ जीचन का सुव मून्ट प्रम ही जीवन सूरि समान हुआ । साते पीन सात जगते सवम प्रम प्रधान द्‌आ॥ ६९. बाहर भीतर तनमें मन में चाल ढाल मं समा गया] नस नस में रख भिंदा प्रम का बाल वाल में समा गया ॥ मनस वाचा आर कमणा पावन प्रस प्रकाइश छुआ 1 ५ बरदा परस्पर प्रेम दिन्टांमंरागघपका नाद्रा हुआ ॥ ५० ¢ २५ ४: उडगण सहित चन्द्र का जेस सूय प्रकादित करते हैं । चिना परिश्रम अनायास ही अंधकार को हरते हैं ॥ दमा तरह से प्रमी जा का सव पर पूण प्रभाव हृञ। सतत संगी युवकों के दिलमें प्रेम भक्ति का चाव हुआ ॥ ८ सेवा सक्ति प्रेम के बल को भलीभांति से मनन किया । प्रम कुटी में सच्च प्रेमी मित्रों का संगठन किया ॥ प्रम देव के सन्मुख करके मुस्तदी मे कोल करार । प्रम मेडल्टी वनी अनोखी सभा सदो का बढी शुमार ॥ ४२ ९ (॥ न प तपन न पैर +. पर पका पिन तौ त क पन िय पफय > 44 [3 १ क पर पाा पर




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